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________________ १, ४, २. ] फोसणागमे मिच्छाइफोसण परूवर्ण [ १४७ आयामं चोदसखंडाई काढूण विक्खंभेण सत्त खंडे करिय लोगपमाणादा अधियखेत्तं फुसिय फेलिदे सगल - विगलावयवसहिद लोग खेत्तं परिष्फुडं होदूग दीसदि । तत्थ द्विदसुत्तवसेण सव्वाणि खेत्तखंडाणि आणिय मेलाविदे वि तं चैव लोगपमाणं होदि । अथवा, सात राजुप्रमाण चौड़े और चौदह राजुप्रमाण लम्बे क्षेत्रको स्थापन करके आयामकी अपेक्षा चौदह खंड करके और विष्कम्भकी अपेक्षा सात खंड करके, पुनः लोकके प्रमाणमें से अधिक क्षेत्रको लेकर राजुके प्रमाणसे खंडित करनेपर, अपने सकल और विकल अवयवोंसे सहित लोकरूप क्षेत्र परिस्कुट होकर दिखाई देता है । पुनः वहांपर बताये गए सूत्र के अनुसार समस्त क्षेत्रखंडों को निकाल करके मिलानेपर भी वही तीन सौ तेतालीस घनराजु लोकका प्रमाण हो जाता है । - विशेषार्थ – उक्त कथनका अभिप्राय यह है कि पुरुषाकार लोकके आकार में त्रसनाली तथा उसके आगे पीछे त्रसनालीके समान ही जो क्षेत्र है वह सब पूर्व-पश्चिम एक राजु चौड़ा, उत्तर-दक्षिण सात राजु मोटा और ऊपर-नीचे चौदह राजु लम्बा है। इस कपाटाकार आयत-चतुरस्र क्षेत्रको लम्बाईकी ओरसे एक एक राजु प्रमाणसे खंडित करके पुनः मोटाईकी ओरसे भी एक राजुप्रमाणसे खंडित करना चाहिए । इस प्रकारले उक्त कपाटाकार आयतचतुरस्रक्षेत्र के एक राजुप्रमाण लम्बे, चौड़े और मोटे अर्थात् घनात्मक खंड १४ × ७ = ९८ ) अठ्यानवे होते हैं। पुनः लोकप्रमाण मेंसे इस क्षेत्रके ( इन खंडों के ) अतिरिक्त जो अवशिष्ट क्षेत्र बचा है, उसे लेकर सम विभागोंको ऊपर-नीचे स्थापनकर पूर्वोक्त प्रमाणसे ही एक एक राजुप्रमाणके खंड करना चाहिए, जिसका क्रम इस प्रकार है- मध्यलोक से नीचे अधोभागके जो शेष दोनों पार्श्ववर्ती दो भाग हैं, उन्हें एकके ऊपर दूसरेको विपर्यासक्रमसे रखना चाहिए। ऐसा करने पर वह सात राजुप्रमाण लम्बा, चौड़ा समचतुरस्र क्षेत्र बन जाता है, जिसकी कि मोटाई सर्वत्र तीन राजुप्रमाण हो जाती है। इसके भी एक एक घनराजुप्रमाण बंड करने पर (७ x ७ x ३ = १४७ ) एकसौ सैंतालीस खंड होते हैं । इसी प्रकार से ऊर्ध्वलोकके अवशिष्ट क्षेत्रको ब्रह्मलेोकके पास से छिन्न कर देनेपर समान मापवाले चार भाग हो जाते हैं। इन्हें क्रमशः विपर्यासक्रम से स्थापित करने पर सात राजु लम्बे, साढ़े तीन राजु चौड़े और दो राजु मोटे, ऐसे दो आयत-चतुरस्र क्षेत्र हो जाते हैं। यदि इन दोनों भाग को भी चौड़ाईकी ओरसे मिला दिया जाय, तो सात राजुप्रमाण लम्बा-चौड़ा एक समचतुरस्र क्षेत्र बन जाता है, जिसकी कि मोटाई सर्वत्र दो राजु होगी । इसके भी एक एक घनराजुप्रमाण खंड करने पर (७ x ७ x = ९८ ) अठ्यानवे खंड होते हैं । इस प्रकारसे उत्पन्न हुए इन समस्त खंडों को जोड़ देने पर (९८ + १४७ + ९८ = ३४३ ) तीन सौं तेतालीस खंड हो जाते हैं, जो कि प्रत्येक एक एक घनराजुप्रमाण हैं । अतएव इस प्रकार से भी ढोकका प्रमाण ३४३ घनराजु निकल आता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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