SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ४, २. वहमाणखेत्तपरूवणं पि सुत्तणिबद्धमेव दीसदि । तदो ण पोसणमदीदकालविसिट्ठखेत्त. पदुप्पाइयं, किंतु वट्टमाणादीदकालविसेसिदखेत्तपदुप्पाइयमिदि ? एत्थ ण खेत्तपरूवणं, तं तं पुव्वं खेत्ताणिओगद्दारपरूविदवट्टमाणखेत्तं संभराविय अदीदकालविसिट्ठखेत्तपदुप्पायणटुं तस्सुवादाणा । तदो फोसणमदीदकालविसेसिदखेत्ते पदुप्पाइयमेवेत्ति सिद्धं । सव्वलोगो, सव्वो लोगो मिच्छादिट्ठीहि च्छुत्तो त्ति जं वुत्तं होदि । एत्थ लोगपमाणं पुत्वं व आणेदव्वं । अधवा मुहसहिदमूलमद्धं छेत्तूणद्धेण सत्तबग्गेण । हंतूणेगट्ठकदे घणरज्जू होंति लोगम्हि ॥१॥ एदीए गाहाए आणेदव्यो। अधवा सत्तरज्जुविक्खंभ-चोद्दसरज्जुआयदखेत्तं ठविय शंका-यहां स्पर्शनानुयोगद्वारमें वर्तमानकालसम्बन्धी क्षेत्रकी प्ररूपणा भी सूत्रतिबद्ध ही देखी जाती है, इसलिए स्पर्शन अतीतकालविशिष्ट क्षेत्रका प्रतिपादन करनेवाला नहीं है, किन्तु वर्तमान और अतीतकालसे विशिष्ट क्षेत्रका प्रतिपादन करनेवाला है ? समाधान-यहां स्पर्शनानुयोगद्वारमें वर्तमानक्षेत्रको प्ररूपणा नहीं की जा रही है, किन्तु, पहले क्षेत्रानुयोगद्वारमें प्ररूपित उस उस वर्तमानक्षेत्रको स्मरण कराकर अतीतकालविशिष्ट क्षेत्रके प्रतिपादनार्थ उसका ग्रहण किया गया है । अतएव स्पर्शनानुयोगद्वार अतीतकालसे विशिष्ट क्षेत्रका ही प्रतिपादन करनेवाला है, यह सिद्ध हुआ। - 'सर्वलोक' अर्थात् सम्पूर्ण लोक मिथ्यादृष्टि जीवोंके द्वारा स्पर्श किया गया है, ऐसा कहा गया है। यहांपर लोकका प्रमाण पहले क्षेत्रप्ररूपणामें बताये गये नियमके अनुसार निकाल लेना चाहिए । अथवा लोकको अर्धभागसे छेदकर अर्थात् मध्यलोकसे दो विभाग कर, दोनों विभागोंके पृथक् पृथक् मुखसहित मूलके विस्तारको आधा करके, पुनःसातके वर्गसे गुणा करके, उन दोनों राशियोंको जोड़ देनेपर, लोकसम्बन्धी घनराजु उत्पन्न होते हैं ॥ १॥ ___ इस गाथाके अनुसार लोकका प्रमाण निकालना चाहिए। विशेषार्थ-लोकको मध्यसे विभक्त करनेपर दो भाग हो जाते हैं, ऊर्ध्वलोक और अधोलोक। इनमेंसे अधोलोकका मुख १ राजु और मूल ७ राजुप्रमाण है। अतएव इन दोनोंका योग ८ राजु हुआ। इसके आधे ४ को ७ के वर्ग (७ x ७ = ४९) से गुणा करनेपर (४४४९% ) १९६ राजु आते हैं। यही अधोलोकके घनराजुओंका प्रमाण है। इसी प्रकारसे ऊर्ध्वलोकका मुख १ राजु और मूल ५ राजुप्रमाण है, दोनोका योग ६ राजु हुआ। इसके आधे ३ को ७ के वर्गसे गुणा करनेपर (३४४९ =) १४७ राजु आते हैं। यही ऊर्ध्वलोकके धनराजुओका प्रमाण है। उक्त दोनों प्रमाणोंको एकत्रित करनेपर (१९६ + १४७ = ) ३४३ लोकसम्बन्धी घनराजुओंका प्रमाण होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy