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________________ ९४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, ३, २३. घणंगुलस्स असंखेजदिभागो । तस्स को पडिभागो ! पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । बादरवणफदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्तओगाहणा वि घणंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता, अण्णा तदो बीइंदियपज्जत्तओगाहणा असंखेज्जगुणा ण होज्ज । तदो पत्तेयसरीरपज्जतरासी तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागेण होज ! ण एस दोसो, घणंगुलभागहारो पदरंगुलभागहारादो संखेज्जगुणो ति । पत्तेयसरीरपज्जत्तजहण्णोगाहणादो बीइंदियपज्जतजहण्णोगाहणा असंखेज्जगुणा त्ति कुदो णव्त्रदे ? वेदणाखेत्तविहाणम्हि वुत्तवोगाहणदंडयादो । तं जहा - सन्वत्थोवा सुहुमणिगोदजीव अपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा सुहुमवाउकाइयअपजत्तयस्स जहण्णिया ओगाहणा असंखेजगुणा । सुहुमतेउकाइय अपजतयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा । सुहुमआउकाइयअपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेजगुणा | सुहुम पुढविकाइय अपजत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा । बादर असंख्यातवें भागप्रमाण है । शंका-उसका क्या प्रतिभाग है, अर्थात् जिसका भाग घनांगुलमें देनेसे उसका विवक्षित असंख्यातवां भाग आता है, वह प्रतिभाग क्या है ? समाधान - पल्योपमका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है । शंका- बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवकी अवगाहना भी घनांगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है, यदि ऐसा न माना जावे तो इससे द्वीन्द्रिय पर्याप्त जीवों की अवगाहना असंख्यातगुणी नहीं हो सकती है, इसलिये प्रत्येकशरीर पर्याप्त राशि तिर्यग्लोक के संख्यातवें भागप्रमाण होना चाहिये ? समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, घनांगुलका भागद्दार प्रतरांगुलके भागद्दारसे संख्यातगुणा है । शंका - वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्तकी जघन्य अवगाहनासे द्वीन्द्रिय पर्याप्तकी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है, यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान -- वेदना क्षेत्रविधान में कहे गये अवगाहना दंडकसे यह जाना जाता है कि प्रत्येकशरीरकी जघन्य अवगाहनासे द्वीन्द्रिय पर्याप्तकी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है। आगे इसीका स्पष्टीकरण करते हैं-सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीवकी जघन्य अवगाहना सबसे स्तोक है । इससे सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्त जीवकी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है। इससे सूक्ष्म तैजस्कायिक अपर्याप्त जीवकी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । इससे सूक्ष्म जलकायिक अपर्याप्त जीवकी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । इससे सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्त जीवकी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है। इससे बादर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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