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________________ ९२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ३,२२. भदि त्ति आउकाइया सव्वत्थ पुढवीसु ण होति ति णासंकणिज्जं, बादरकम्मोदएण बादरत्तमुवगयाणं अणुवलं ममाणाणं पि सव्वपुढासु अत्थित्तविरोधाभावाद।। एवं बादरतेउकाइयाणं तस्सेव अपज्जत्ताणं च । णवरि वेउब्धियपदमत्थि, ते च पंचण्हं लोगाणमसंखेजदिभागे । तेउकाइया बादरा सयपुढवीसु हाँति त्ति कथं णव्यदे ? आगमादो । एवं बादरवाउकाइयाणं तेसिमपज्जत्ताणं च । णवरि सत्थाण-वेयण-कसाय-समुग्घादगदा तिण्हं लोगाणं संखेजदिभागे, दो लोगेहिंतो असंखेज्जगुणे । वे उबियसमुग्घादगदा चदुण्हं लोगाणमसंखेञ्जदिभागे । माणुसखेत्तं ण विण्णायदे । सबअपज्जत्तेसु वेउवियपदं णत्थि । ......... कायिक जीवोंके समान स्वस्थानस्वस्थान, वेदनासमुद्धात और कषाय समुद्धातको प्राप्त हुए बादरजलकायिक और बादरजलकायिक अपर्याप्त जीव सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यात भागमें, तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणे क्षेत्र में, तथा मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादको प्राप्त हुए बादर जल कायिक और उन्हींके अपर्याप्त जीव सर्व लोक में रहते हैं। शंका-पृथिवियोंमें सर्वत्र जल नहीं पाया जाता है, इसलिये जल कायिक जीव पृथिवियों में सर्वत्र नहीं रहते हैं ? समाधान- ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि, बादरनामक नामकर्मके उदयसे बादरत्वको प्राप्त हुए जल कायिक जीव यद्यपि पृथिवियों में सर्वत्र नहीं पाये जाते हैं, तो भी उनका सर्व पृथिचियों में अस्तित्व होने में कोई विरोध नहीं आता है। ___इसीप्रकार अर्थात् बादर जलकायिक और उन्हींके अपर्याप्त जीवोंके समान बादर तैजस्कायिक और उन्हींके अपर्याप्त जीवोंका स्वस्थानस्वस्थान आदि पूर्वोक्त पदोंमें कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि बादर तेजस्कायिक जीवोंके चैक्रियिकसमुद्धातपद भी होता है और वे पांचों लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में रहते हैं। शंका-बादर तेजस्कायिक जीव सर्व पृथिवियों में होते हैं, यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-आगमसे यह जाना जाता है कि बादर तैजस्कायिक जीव सर्व पृथिवि. यों में रहते हैं। इसीप्रकार बादर वायुकायिक और उन्हींके अपर्याप्त जीवोंके पदोंका कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि स्वस्थान, वेदनासमुद्धात, और कषायसमुद्धातको प्राप्त हुए बादर वायुकायिक और बादर वायुकायिक अपर्याप्त जीव सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें और तिर्यग्लोक तथा मनुष्यलोक इन दो लोकोंसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते हैं। वैक्रियिकसमुद्धातको प्राप्त हुए बादर वायुकायिक जीव सामान्यलोक आदि चार लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें रहते हैं । किन्तु यहां मनुष्यक्षेत्र नहीं जाना जाता है कि उसके कितने भागमें रहते हैं। सभी अपर्याप्त जीवों में चक्रियिकसमुद्धातपद नहीं होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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