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________________ .६८ ] छक्खडागमे जीवद्वाणं [ १, ३, ८. एवं सम्मामिच्छाइट्ठि-असंजदसम्माइट्ठि-संजदासंजदाणं । मारणंतियसमुग्धादगदसास सम्मादिट्ठी केवड खेत्ते ? चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे अच्छंति । ओघरा सिमावलियाए असंखेज्जदिभागेण भागे हिदे मरत सासणसम्माइसी होदि । पुणेो वि आवलियाए असंखेज्जदिभागेण हरिय रूवूण गुणिदे मारणंतियसमुग्धादगदरासी होदि । पुणो वि आवलियाए असंखेज्जदिभागेण भागे हिदे रज्जुमेत्तायामेण मारणंतियस मुग्धादगद एगसमयसंचिदरासी होदि । तमावलियाए असंखेज्जदिभागेण गुणिदे तक्कालसंचिदरासी होदि । एदं संखेज्जपदरंगुलगुणिदरज्जूए गुणिदे मारणंतियखेत्तं होदि । एवमसंजद - संजदासंजदाणं । सम्मामिच्छाइट्ठीणं मारणंतियं णत्थि । उववादगद सासणसम्माइट्ठी केवडि खेत्ते, चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । एत्थ रासिपमाणमाणिज्जमाणे मूलरासिमावलियाए असंखेज्जदि किया है, तो भी उनके घनांगुलका प्रमाण उत्तरोत्तर संख्यातगुणा कहा है। वहांपर पंचेन्द्रिय पर्याप्तजीवों की जघन्य अवगाहना एकवार संख्यातसे भाजित घनांगुल प्रमाण कही है। संभवतः धवलाकारने उसी जघन्य अवगाहना के घनफलको दृष्टिमें रखकर एक घनांगुल गुणाकारका प्रमाण कहा है। 6 " इसीप्रकार सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत तिर्यचों के भी स्वस्थानस्वस्थान आदिके विषय में समझना चाहिये। मारणान्तिकसमुद्धतिको प्राप्त हुए सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यंच कितने क्षेत्र में रहते हैं ? सामान्यलोक आदि चार लोकों के असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं। ओघराशिको आवलीके असंख्यातवें भागसे भाजित करने पर मरनेवाली सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यचराशि होती है । फिर भी आवलीके असंख्यातवें भागसे भाजित करके एक कम उससे गुणित करने पर मारणान्तिकसमुद्धातको प्राप्त राशि होती है । फिर भी आवलीके असंख्यातवें भाग भाजित करने पर रज्जुमात्र आयामकी अपेक्षा मारणान्तिकसमुद्धातको प्राप्त एक समय में संचित जीवराशि होती है । इसे आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर मारणान्तिक समुद्वातके काल में संचित हुई राशि होती है । इसे संख्यात प्रतरांगुलोंसे गुणित राजुसे गुणा करने पर मारणान्तिकक्षेत्र होता है । इसीप्रकार असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत तिर्येचों के मारणान्तिकसमुद्धात के विषय में कहना चाहिये । सम्यग्मिथ्यादृष्टियों के मारणान्तिकसमुद्धात नहीं होता है । उपपादको प्राप्त सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यंच कितने क्षेत्र में रहते हैं ? सामान्यलोक आदि चार लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं। यहां पर सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यचौकी उपपादराशिका प्रमाण लाने पर मूलराशिको १ प्रतिषु ' भागं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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