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________________ ३४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, ३, २. भमरखेत्तं' पुण जोयणायामं अद्धजोयणुस्सेहं जोयणद्धपरिहिविक्खभं ठविय विक्खंभद्धमुस्सहगुणमाया मेण गुणिदे उस्सेहजोयणस्स तिष्णि - अर्द्धभागा भवंति । ते घणगुलाणि कीरमाणे पण्ण रहसद - छत्तीसरूवेहि घणीकदेहि तिण्णिसय-वासट्ठिकोडीहि अट्टहत्तरिसहस्साहिय-अट्ठत्तीसलक्खेहि छस्सद छप्पण्णेहि य उस्सेधघणजोयणाणि गुणिदे पमाणघणंगुलाणि हवंति । गोम्हि आयामो उस्सेधजोयणतिष्णि चउब्भागो, तदट्ठभागो विक्खंभो, एक योजन लम्बे, आधे योजन ऊंचे और आधे योजनकी परिधिप्रमाण विष्कंभवाले भ्रमरक्षेत्रको स्थापित करके, विष्कंभके आधेको उत्सेधसे गुणा करके, जो लब्ध आवे उसे आयामसे गुणित करनेपर एक योजनके तीन भागों में से आठ भाग लब्ध आते हैं। और यही भ्रमरक्षेत्रका घनफल है । उदाहरण - भ्रमरका आयाम १ योजन, उत्सेध ३ योजन, विष्कंभ योजनकी परिधिप्रमाण । ई योजनकी स्थूल परिधि १३ योजन । ३ ÷ २ = ; x 2 = 2 ; 2 × १= 2 भ्रमर क्षेत्रका योजनोंमें घनफल । भ्रमर क्षेत्र के योजन में आये हुए घनफलके घनांगुल करनेपर आये हुए घनफलको पन्द्रहसौ छत्तीसके घन तीनसौ बासठ करोड़, हजार, छहसौ छप्पनसे गुणित करनेपर प्रमाणघनांगुल होते हैं । उदाहरण - भ्रमर क्षेत्रका उत्सेध घनयोजन में घनफल ; एक उत्सेध घनयोजन के प्रमाण घनांगुल १५३६ = ३६२३८७८६५६ प्रमाण घनांगुलोंमें भ्रमरक्षेत्रका घनफल । ४३६२३८७८६५६=१३५८९५४४९६ विशेषार्थ - एक उत्सेध योजनमें सात लाख अडसठ हजार उत्सेधसूच्यंगुल होते हैं । इस नियमसे एक उत्सेधघनयोजनके घनांगुल करनेपर उसमें सात लाख अडसठ हजार को तीनवार रखकर परस्पर गुणा करनेसे जितना लब्ध आयगा उतने उत्सेधघनांगुल होंगे । उत्सेधयेाजनसे प्रमाणयोजन पांचसौ गुणा बड़ा होता है, अतएव इन उत्सेधघनांगुलों के प्रमाणघनांगुल करनेके लिये उक्त अंगुलोंके प्रमाण में पांचसौके घनका भाग देने पर ३६२३८७८६५६ घनांगुल आ जाते हैं, और वह राशि १५३६ के घनप्रमाण पड़ती है । गोहीका आयाम उत्सेधयोजनके चार भागों में से तीन भाग प्रमाण है । विष्कंभ उत्सेधके आठवें भागप्रमाण है, और बाइल्य विष्कंभसे आधा है । गोम्ही क्षेत्रका घनफल १ सयंपहाचलपरभागट्टियखेत्ते उप्पण्णभमरस्स उक्करसोगाहणं XXX जोयणायामं अद्धजोयणुस्से हूं जोयणद्ध परिहिविक्खंभं ठविय विवखंभद्धमुस्सेहगुणमायामेण गुणिदे उस्सेहजोयणस्स तिष्णिअट्ठभागा भवति । तं वेदं । ते पमाणघणंगुला कीरमाणे एकसयपंचतीसकोडीए उणणउदिलक्ख चउवण्णसहस्स चउसय-कृण्णउदिरूहि गुणिघणं गुलाणि हवंति । तं चेदं १३५८९५४४९६ । ति. प. प. १९५ २ म प्रत्योः ' अ ' इति पाठः । Jain Education International इस उत्सेध घनयोजन में अड़तीस लाख, अठहत्तर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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