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________________ १, ३, २. ] खेत्तागमे लोगपमाणपरूवणं [ १५ सदखंडेहि सादिरेयचत्तारिरज्जुभुजाणि कण्णक्खेत्ते आलिहिय दोसु वि पासेसु मज्झम्मि छिण्णेसु चत्तारि आयदचउरंसखेत्ताणि अट्ट तिकोणखेत्ताणि च होंति । एत्थ चदुण्हमायदचउरंसखेत्ताणं फलं पुच्चिल्लदोखेत्तफलस्स चउभागमेत्तं होदि । चदुसु विखेत्ते बाहल्लाविरोहेण एगठ्ठे कदेसु तिणिरज्जुबाहल्लं, पुव्विल्लखेत विक्खभायामेहिंतो अद्धमेत्तविक्खंभायामपमाणखेत्तुवलंभादो । किमङ्कं चदुण्हं पि मिलिदाणं तिणि रज्जुबाहल्लत्तं ? पुब्विल्लखेत्तवाहल्लादो संपहियखेत्ता मद्धमेत बाहल्लं होदूण तदुस्सेहं पेक्खिद्ग अद्ध सेहद सादो | संपहि सेसअट्ठखेत्ताणि पुत्रं व खंडिय तत्थ सोलस तिकोणखेत्ताणि अतरादीदखे ताणमुस्सेहादो विक्खभादो बाहल्लादो च अद्धमेत्ताणि अवणिय अट्टह मायदचउरंसखेत्ताणं फलमणं तराइकंतचदुखे तफलस्स चउंभागमेत्तं होदि । एवं सोलसबत्तीस-चउसटिआदिकमेण आयदचउरंसखेत्ताणि पुच्चिल्लखेत्तफलादो चउब्भागमेत्तफलाणि होदूण गच्छंति जाव अविभागपलिच्छेदं पत्तं ति । एवमुप्पण्णा से सखे त्तफलमेला राजु प्रमाण भुजावाले हैं। उन्हें कर्णक्षेत्र से लगाकर दोनों ही पार्श्वभागों में बीचसे छिन्न करनेपर चार आयतचतुरस्रक्षेत्र और आठ त्रिकोणक्षेत्र हो जाते हैं । यहां पर चारों ही आयतचतुरस्र क्षेत्रों का घनफल पहले के दोनों आयतचतुरस्र क्षेत्रों के घनफलके चतुर्थभाग मात्र होता है, क्योंकि, चारों ही क्षेत्रोंको बाल्यके अविरोधसे इकट्ठा करनेपर अर्थात् यथाक्रम से विपर्यास कर उलटा रखने पर तीन राजु बाद्दल्य और पहले के क्षेत्र के विष्कम्भ और आयाम से अर्धमात्र विष्कम्भ और आयाम प्रमाणवाला क्षेत्र पाया जाता है । शंका - इन चार आयतचतुरस्र क्षेत्रोंके मिलाने पर तीन राजु बाहुल्य कैसे होता है ? समाधान क्योंकि, पहले बताये हुये आयतचतुरस्र क्षेत्रके बाद्दल्य से इस समय के आयतचतुरस्र क्षेत्रोंका बाहल्य आधा ही है । और पहले के उनके उत्सेधकी अपेक्षा अबके इनका उत्सेध भी आधा ही दिखाई देता है । अब शेष रहे आठ त्रिकोण क्षेत्रोंको पूर्वके समान ही खंडित करनेपर उनमें सोलह त्रिकोणक्षेत्र और आठ आयतचतुरस्रक्षेत्र हो जाते है । पहले बताये गये चार आयतचतुरस्र क्षेत्रों का उत्सेधसे, विष्कम्भसे और बाहूल्य से अर्धप्रमाण निकालकर आठों ही आयतचतुरस्र क्षेत्रोंका घनफल अभी बताये गये चार आयतचतुरस्र क्षेत्रों के घनफलके चतुर्थ भागमात्र होता है । इसीप्रकार सोलह, बत्तीस, चौसठ आदिक्रम से आयतचतुरस्रक्षेत्र पहले पहले के आयतचतुरस्रक्षेत्र के घनफलोंके चतुर्थ भागमात्र घनफलवाले होते हुए तब तक चले जायेंगे जबतक कि अविभागप्रतिच्छेद अर्थात् एक परमाणु ( प्रदेश ) नहीं प्राप्त हो जायगा । इसप्रकार से उत्पन्न हुए समस्त क्षेत्रोंके घनफलोंके जोड़नेका १ प्रतिषु ' कम्म ' इति पाठः । २ अ-आ-क प्रतिषु ' चउत्थ ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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