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________________ १, ३, २.] खेत्ताणुगमे लोगपमाणपरूवणं [१३ सुप्पखेत्तं होऊण चेदि । तस्स मुहवित्थारो एत्तिओ होदि' ३१३ । तलवित्थारो एत्तिओ होदि २२.१५ । एत्थ मुहवित्थारेण सत्तरज्जुआयामेण छिदिदे दो तिकोण खेत्ताणि एयमायदचउरस्सखेत्तं च होइ। तत्थ ताव मज्झिमखेत्तफलमाणिजदे । एदस्स उस्सेहो सत्त रज्जूओ। विक्खंभो पुण एत्तिओ होदि ३१३ । मुहम्मि एगागासपदेसबाहल्लं, तलम्मि तिण्णि रज्जुबाहल्लो त्ति सत्तहि रज्जूहि मुहवित्थारं गुणिय तलबाहल्लद्धेण गुणिदे मज्झिमखेत्तफलमेत्तियं होइ ३४३३६ । संपहि सेसदोखेत्ताणि सत्तरज्जुअवलंबयाणि तेरसुत्तरसदेण खंडको ग्रहण कर उसे (एक ओरसे ) ऊपरसे (लगाकर नीचेतक ) काटकर पसारने पर सूर्ण (सूपा) के आकारवाला क्षेत्र हो जाता है। विशेषार्थ-यहांपर शंकाकार, अन्य आचार्योंसे प्ररूपित जिस, मृदंगाकार लोकको दृष्टिमें रखकर यह कथन कर रहा है, उसका भाव यह है कि कितने ही आचार्य अधोलोकका आकार चारों ओरसे गोल ऐसे वेत्रासनके समान मानते हैं । जो नीचे गोल आकारवाला तथा सात राजु चौड़ा है, और ऊपर क्रमशः घटता हुआ मध्यलोकमें गोल आकारवाला तथा एक राजु चौड़ा है। इसके ठीक मध्यमें ऊपरसे नीचेतक स्थित सात राजु लम्बी एक राजु चौड़ी गोल आकारवाली त्रसनाली है। उसको यदि वेत्रासनाकार अधोलोकके बीच में से निकालकर बचे हुए अधोलोकको एक ओरसे ऊपरसे नीचेतक काटकर पसार दिया जाय, तो उसका आकार ठीक सूपाके समान हो जाता है। इस सूर्पाकार क्षेत्रके मुखका विस्तार ३११ इतना है, और तलका विस्तार २२४१३ राजुप्रमाण है । इसे मुखविस्तारसे ( अर्थात् मुखविस्तारके अन्तसे लगाकर दोनों ओर ) सात राजु लम्बा नीचेकी ओर छेदनेपर दो त्रिकोण क्षेत्र और एक आयतचतुरस्रक्षेत्र, इसप्रकार तीन क्षेत्र हो जाते हैं। उक्त प्रकारसे बने हुए इन तीन क्षेत्रोंमेंसे पहले आयतचतुरन्न आकारवाले मध्यवर्ती क्षेत्रका घनफल निकालते हैं । इस आयतच तुरस्र क्षेत्रका उत्सेध ( ऊंचाई ) सात राजु है । और विष्कम्भ ३१३ इतने राजु है । मुख में एक प्रदेश-प्रमाण बाहल्य ( मोटाई ) है और तलभागमें तनि राजुप्रमाण बाहल्य है, इसलिए उत्सेधका प्रमाण जो सात राजु है उससे मुखके प्रमाणको गुणा करके तलभागका वाहल्य जो तीन राजु है उसके आधेसे अर्थात् डेढ़ राजुसे गुणा करने पर मध्यम क्षेत्रका अर्थात् आयतचतुरस्र क्षेत्रका घनफल ३५१४१४३३४३२६ इतना होता है। अब शेष जो दो त्रिकोण क्षेत्र है वे सात राजु लम्बे हैं, और एकसौ तेरहसे एक राजुको खंडित कर उनसे अड़तालीस खंड अधिक नौ राजु भुजावाले हैं अर्थात् उनका १ अ-क प्रत्योः 'एतिओ होदि ' इति पाठो नास्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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