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________________ ८ ] छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, ३, १. पंचविधभावो वा । एदेसु खेत्तेसु केण खेतेण पयदं ? गोआगमदो दव्वखेत्तेण पयदं । णोआगमदो दव्वखेत्तं णाम किं ? आगासं गगणं देवपथं गोज्झगाचरिदं अवगाहणलक्खणं आधेयं वियापगमाधारो भूमि त्ति एयो । कस्स खेत्तं १ सुण्णोयं भंगो । केण खेत्तं ? पारिणामिण भावेण । कम्हि खेतं ? अप्पाणम्हि चेव । कधमेगत्थ आधाराधेयभावो ? ण, सारे त्थंभ इदि एत्थ वि आधाराधेयभावदंसणादो । केवचिरं खेत्तं १ अणादियमपज्जवसिदं । कदिविधं खेत्तं १ दव्वडियणयं च पडुच्च एगविधं । अथवा पओजणमभि शंका- - ऊपर बतलाये गये इन क्षेत्रोंमेंसे यहां पर कौनसे क्षेत्रले प्रयोजन है ? समाधान- यहां पर नोआगमद्रव्यक्षेत्र से प्रयोजन है । शंका - नोआगमद्रव्यक्षेत्र किसे कहते हैं ? समाधान - आकाश, गगन, देवपथ, गुह्यकाचरित ( यक्षोंके विचरणका स्थान ) अवगाहनलक्षण, आधेय, व्यापक, आधार और भूमि, ये सब नोभागमद्रव्यक्षेत्र के एकार्थक नाम हैं । विशेषार्थ- - अब धवलाकार क्षेत्रका विचार, निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति और विधान, इन प्रसिद्ध छद्द अनुयोगद्वारोंसे क्रमशः करते हैं। इनमेंसे ऊपर जो निक्षेप या एकार्थ द्वारा क्षेत्रका विचार किया गया है, वह सब निर्देश के अन्तर्गत समझना चाहिए । शंका- क्षेत्र किसका है, अर्थात् इसका स्वामी कौन है ? समाधान - यह भंग शून्य है, अर्थात् क्षेत्रका स्वामी कोई नहीं है । शंका- किससे क्षेत्र होता है, अर्थात् क्षेत्रका साधन या करण क्या है ? समाधान - पारिणामिक भावसे क्षेत्र होता है, अर्थात् क्षेत्रकी उत्पत्ति में कोई दूसरा निमित्त न होकर वह स्वभावसे है । शंका- किसमें क्षेत्र रहता है, अर्थात् इसका अधिकरण क्या है ? समाधान शंका- एक ही आकाशमें आधार-आधेय भाव कैसे संभव है ? --- - अपने आपमें ही यह रहता है, अर्थात् क्षेत्रका अधिकरण क्षेत्र ही है । समाधान — नहीं; क्योंकि, 'सारमें स्तम्भ है' इस प्रकार एक वस्तुमें भी आधार आधेयभाव देखा जाता है । शंका- कितने कालपर्यन्त क्षेत्र रहता है, अर्थात् क्षेत्रकी स्थिति कितनी है ? -क्षेत्र अनादि और अनन्त है । समाधान १ ओदइए ओवसमिए खइए अ तहा खओवसमिए अ । परिणामि सन्निवाए अ छव्विहो भावलोगो ड ॥ २०० ॥ ( अभि. रा. लोक. ) २२ प्रतौ' सारत्थंभ ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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