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१, ३, १. ]
खेत्तागमे णिदेसपरूवणं
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दव्वाणमेगत्तणिबंधणेत्ति वा दुवणाणिक्खेवो दव्वट्ठियणयवल्लीणो । दव्वखेत्तं दुविहं आगमदो गोआगमदो य । तत्थ आगमदो खेत्तपाहुडजाणओ अणुवजुत्तो । कधमेदस्स जीवदवियस सुदणाणावरणीयक्खओवसमविसिस्स दव्त्र - भावखेत्तागमवदिरित्तस्स आगमदव्वखेत्तववएसो ? ण एस दोसो, आधारे आधेयोवयारेण कारणे कज्जुवयारेण
द्रव्योंमें व्याप्त होनेके कारण, अथवा, प्रधान और अप्रधान द्रव्योंकी एकताका कारण होनेसे द्रव्यार्थिकनय के अन्तर्गत है, ऐसा समझना चाहिए ।
विशेषार्थ - स्थापनानिक्षेपको द्रव्यार्थिकनयका विषय सिद्ध करनेके लिए दो हेतु दिये गये हैं, जिनका अभिप्राय क्रमशः इसप्रकार है । ( १ ) स्थापनानिक्षेप सद्भाव और असद्भावरूपसे सर्व द्रव्योंमें व्याप्त है, इसका अर्थ यह है कि त्रिलोकवर्ती सभी द्रव्य यद्यपि स्वतंत्र एवं निश्चित आकारवाले हैं; तथापि व्यवहारके योग्य एवं विशेष अपेक्षासे विशिष्ट आकार से परिकल्पित द्रव्यको साकार, सद्भावरूप या तदाकार कहा जाता है, और उससे भिन्न आकारवाली वस्तुको अनाकार, असद्भाव या अतदाकार कहा जाता है । काष्ठ या दांत वगैरह यद्यपि अपने स्वतंत्र आकारवाले हैं, तथापि उन्हींको हाथी, घोड़ा आदि किसी एक विवक्षित या निश्चित आकारसे घटित कर दिये जाने पर उन्हें तदाकार कहा जाता है, और निश्चित आकारसे घटित नहीं होने पर भी जो संकेतद्वारा किसी वस्तुस्वरूपकी परिकल्पनाकी जाती है, उसे अतदाकार कहते हैं । इसप्रकार यह स्थापनाका व्यवहार तदाकार और अतदाकाररूपसे सर्व द्रव्योंमें पाया जाता है, अर्थात् सभी द्रव्यों में दोनों प्रकारका स्थापनानिक्षेप किया जा सकता है, जो कि क्षेत्रभेद या कालभेद होने पर भी तदवस्थ रहता है। इस कारण से स्थापनानिक्षेपको द्रव्यार्थिकनयका विषय कहा है । ( २ ) प्रधान और अप्रधान द्रव्योंकी एकताका कारण कहनेका अभिप्राय यह है कि जिस वस्तुकी स्थापना की जाती है, वह प्रधान द्रव्य, तथा जिस वस्तुमें स्थापना की जाती है, वह अप्रधान द्रव्य कहलाता है । 'यह सिंह है ' इस प्रकार से स्थापनानिक्षेप असली सिंहरूप प्रधानद्रव्य और मट्टी आदिके खिलौनेमें स्थापित सिंहरूप आकारवाले अप्रधान द्रव्यमें एकताका कारण अर्थात् एकत्वप्रतीतिका निमित्त होता है, इसलिए भी स्थापनानिक्षेप द्रव्यार्थिकनयका विषय है ।
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आगमद्रव्यक्षेत्र और नोआगमद्रव्य क्षेत्र के भेदसे द्रव्यक्षेत्र दो प्रकारका है। उनमें से क्षेत्रविषयक शास्त्रका ज्ञाता, किन्तु वर्तमानमें उसके उपयोगसे रहित जीव आगमद्रव्य क्षेत्र निक्षेप है ।
शंका- श्रुतज्ञानावरणीय कर्मके क्षयोपशम से विशिष्ट, तथा द्रव्य और भावरूप क्षेत्रागमसे रहित इस जीवद्रव्य के आगमद्रव्यक्षेत्ररूप संज्ञा कैसे प्राप्त हो सकती है ?
समाधान- यह कोई दोष नहीं है; क्योंकि, आधाररूप आत्मामें आधेयभूत क्षयोपशमस्वरूप आगमके उपचारसे, अथवा, कारणरूप आत्मामें कार्यरूप क्षयोपशमके उपचार से,
१ म २ प्रतौ णवमीणो ' इति पाठः ।
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