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छक्खंडागमे जीवठ्ठाणं
[ १, २, १. द्रवति द्रोष्यति अदुद्रवत्पर्यायानिति द्रव्यम् । अथवा द्रूयते द्रोष्यते अद्रावि पर्याय इति द्रव्यम् । तं च दव्वं दुविहं, जीवदव्यं अजीवदव्यं चेदि । तत्थ जीवदव्धस्स लक्खणं वुच्चदे । तं जहा, ववगदपंचवण्णो ववगदपंचरसो ववगददुगंधो ववगदअट्ठफासो सुहुमो अमुत्ती अगुरुगलहुओ असंखेजपदेसिओ अणिदिसंठाणो त्ति एवं जीवस्स साहारणलक्षणं । उड्डगई भोत्ता सपरप्पगासओ त्ति जीवदव्यस्स असाहारणलक्खणं । ' उत्तं च
अरसमरूवमगंधं अव्वत्तं चेदणागुणमसदं ।
जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिदिसंठाणे ॥ १ ॥ जं तं अजीवदव्यं तं दुविहं, रूवि-अजीवदव्यं अरूवि-अजीवदव्यं चेदि । तत्थ जे तं रूवि-अजीवदव्यं तस्स लक्खणं वुचदे- रूपरसगन्धस्पर्शवन्तः पुद्गलाः रूपि अजीवद्रव्यं
जो पर्यायोंको प्राप्त होता है, प्राप्त होगा और प्राप्त हुआ है उसे द्रव्य कहते हैं। अथवा, जिसके द्वारा पर्याय प्राप्त की जाती है, प्राप्त की जायगी और प्राप्त की गई थी उसे द्रब्य कहते हैं। वह द्रव्य दो प्रकारका है, जीवद्रव्य और अजीवद्रव्य । उनमेंसे जीवद्रव्यका लक्षण कहते हैं। वह इसप्रकार है, जो पांच प्रकारके वर्णसे रहित है, पांच प्रकारके रससे रहित है, दो प्रकारके गन्धले रहित है, आठ प्रकारके स्पर्शसे रहित है, सूक्ष्म है, अमूर्ति है, अगुरूलघु है, असंख्यातप्रदेशी है और जिसका कोई संस्थान अर्थात् आकार निर्दिष्ट नहीं है वह जीव है। यह जीवका साधारण लक्षण है। अर्थात् यह लक्षण जीवको छोड़कर दूसरे धर्मादि अमूर्त द्रव्योंमें भी पाया जाता है, इसलिये इसे जीवका साधारण लक्षण कहा है। परंतु ऊर्ध्वगतिस्वभावत्व, भोक्तृत्व और स्वपरप्रकाशकत्व यह जीवका असाधारण लक्षण है। अर्थात् यह लक्षण जीवद्रव्यको छोड़कर दूसरे किसी भी द्रव्यमें नहीं पाया जाता है, इसलिये इसे जीवद्रव्यका असाधारण लक्षण कहा है। कहा भी है
जो रसरहित है, रूपरहित है, गन्धरहित है, अव्यक्त अर्थात् स्पर्शगुणकी व्यक्तिसे
चेतनागुणयक्त है. शब्दपर्यायसे रहित है, जिसका लिंगके द्वारा ग्रहण नहीं होता है और जिसका संस्थान अनिर्दिष्ट है अर्थात् सब संस्थानोंसे रहित जिसका स्वभाव है उसे जीवद्रव्य जानो ॥१॥
अजीवद्रव्य दो प्रकारका है, रूपी अजीवद्रव्य और अरूपी अजीवद्रव्य । उनमें जो रूपी अजीवद्रव्य है उसका लक्षण कहते हैं। रूप, रस, गन्ध और स्पर्शसे युक्त पुद्गल रूपी
१ प्रवच. २, ८०, पश्चा. १३४. २ — स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः ' तत्त्वार्थसू. ५, २३.
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