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________________ पृष्ठ नं. २६९/ असं २८० . द्रव्यप्रमाणानुगम-विषयसूची क्रम नं. विषय . पृष्ठ नं. क्रम नं. विषय प्रत्येक गुणस्थानमें सामान्य सासादन, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और देवोंका प्रमाण असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंका प्रमाण, ७६ असंयतसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्या तथा सनत्कुमारसे लेकर शतार दृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि सहस्रार कल्पतक मिथ्यादृष्टि देवोंका अवहारकाल देवोंका प्रमाण और भागहार १७७ भवनवासी मिथ्यादृष्टियोंका द्रव्य, आनत-प्राणत कल्पसे लेकर नव काल और क्षेत्रकी अपेक्षा प्रमाण । ग्रैवेयक तक मिथ्यादृष्टयादिचारों १७८ सासादन, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और गुणस्थानवर्ती देवोंका प्रमाण २८१ असंयतसम्यग्दृष्टि भवनवासियों- १८९ अनुदिशोसे लेकर अपराजित का प्रमाण अनुत्तरविमानतक असंयतसम्य१७९ वानव्यन्तर मिथ्यादृष्टि देवोंका ग्दृष्टि देवोंका प्रमाण द्रव्य, काल और क्षेत्रकी अपेक्षा १९० गुणस्थान-प्रतिपन्न सर्व देवोंके प्रमाण अवहारकाल १८० वानव्यन्तर और योनिमतियोंके आनतादि उपरिम गुणस्थानअबहारकालमें मतभेद और प्रतिपन्न देवोंका प्रमाण पल्योउसका निर्णय पमके असंख्यातवें भाग है, यह १८१ सासादन, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और वचन 'इसके द्वारा अन्तर्मुहूर्तसे असंयतसम्यग्दृष्टि वानव्यन्तरीका पल्योपम अपहृत होता है। ऐसा प्रमाण विशेषित करके क्यों कहा?इसकी १८२ ज्योतिषी देवाका प्रमाण, व उस सफलता प्रमाणको सामान्य देवराशिके १९२ सर्वार्थसिद्धि विमानवासी देवोंका समान कहनेसे आनेवाले दोषका प्रमाण २८६ परिहार २७५ १९३ देवगतिसंबंधी भागाभाग १८३ ज्योतिषी देवोंका अवहारकाल २७६/१९४ देवगतिसंबंधी अल्पबहुत्व ૨૮૮ १८५ सौधर्म और ऐशान कल्पवासी चतुर्गतिसंबंधी भागाभाग २९५ मिथ्यादृष्टि देवोंका द्रव्य, काल १९६ चतुर्गतिसंबंधी अल्पबहुत्व २९७ और क्षेत्रकी अपेक्षा प्रमाण २ इन्द्रियमार्गणा ३०५-३२९ १८५ सौधर्म और ऐशान मिथ्यादृष्टि | १९७ सामान्य एकेन्द्रिय, बादर एके. देवोंकी विष्कंभसूची न्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय और इन १८६ खुद्दाबंधमें सामान्यसे जीवोंका तीनोंके पर्याप्त तथा अपर्याप्तीका प्रमाण कहते समय जो विष्कंभ द्रव्य, काल और क्षेत्रकी अपेक्षा सूचियां बतलाई हैं, वे ही यहां प्रमाण ३०५ विशेषरूपसे जीवोंका प्रमाण १९८ उक्त नौ राशियोंकी ध्रुवराशियां ३०७ बताते समय कही गई हैं, अतः १९९ खंडित आदिके द्वारा उक्त नौ यह कथन परस्पर विरुद्ध है. राशियोंका वर्णन ३०८ इस प्रकार उत्पन्न हुई शंकाका २०० पर्याप्त और अपर्याप्त विकलत्रय समाधान २७८ जीवोंका द्रव्यकी अपेक्षा प्रमाण । ३१० १८७ सौधर्म और ऐशान कल्पवासी २०१ प्रकृतमें पर्याप्त और अपर्याप्त २७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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