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________________ पृष्ट नं. २५४ २५ २५५ २६० २६० ५८ षटखंडागमकी प्रस्तावना फ्रम नं. विषय पृष्ठ नं. क्रम नं. विषय (मनुष्यगति) | मिथ्यादृष्टियोंका प्रमाण होता है, १५२ सामान्य मनुष्य मिथ्यादृष्टियोंका इसका समर्थन द्रव्य, काल और क्षेत्रकी अपेक्षा १६४ दो वेवाले मनुष्य पर्याप्तोंका प्रमाण २४४ अवहारकाल और उनका प्रमाण १५३ सामान्य मनुष्य मिथ्यादृष्टियोंका बादालके घनप्रमाण मनुष्य अबहारकाल व खंडित आदिके पर्याप्तराशि है, इस मतका खंडन ' द्वारा उसका कथन २४६] और सूत्रप्रतिपादित मतका १५४ मध्यम विकल्प और उपरिम समर्थन विकल्पमें भेद २४८/१६६ सासादनगुणस्थानसे लेकर १५५ मनुष्य मिथ्यादृष्टि अवहार संयतासंयततक प्रत्येक गुणस्थानकालका जगश्रेणीमें भाग देने पर में पर्याप्त मनुष्योंका प्रमाण रूप अधिक मिथ्यादृष्टिराशि प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर आती है, इसमें प्रमाण अयोगिकेवली गुणस्थानतक १५६ ओज और युग्म राशियोंके भेद प्रत्येक गुणस्थानमें पर्याप्त मनुप्रभेद और उनके लक्षण २४९ याका प्रमाण १५७ यहां जीवस्थानमें मनुष्य मिथ्या. मनुष्यनियोंमें मिथ्याष्टियोंका दृष्टि अवहारकालका जगश्रेणी में प्रमाण व अवहारकाल निरूपण भाग देनेपर रूप अधिक सासाद सासादन गुणस्थानसे लेकर नादि तेरह गुणस्थानवी अपन अयोगिकेवली तक प्रत्येक गुणयनराशि आती है, इसका सम स्थानमें मनुष्यनियोंका प्रमाण, र्थन तथा गुणस्थान-प्रतिपन्न मनुष्यनी १५८ मनुष्य मिथ्यादृष्टियोंके अवहार गुणस्थान-प्रतिपन्न सामान्य कालका कथन मनुष्योंके संख्यातवें भाग होती १५९ सासादन गुणस्थानसे लेकर हैं, इसमें हेतु संयतासंयत गुणस्थानतक प्रत्येक १७० लब्ध्यपर्याप्त मनुप्योंका द्रव्य, गुणस्थानमें सामान्य मनुष्योंका काल और क्षेत्रको अपेक्षा प्रमाण प्रमाण २५१ १७१ मनुष्यगतिसम्बन्धी भागाभाग १६० सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्य और अल्पबहुत्व ग्मिथ्यादृष्टि मनुष्योंके प्रमाणमें (देवगति) मतभेद २५२१७२ सामान्यदेवों में मिथ्यादृष्टियोंका १६१ प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थानतक मनु- १७३ संख्यात, असंख्यात और अनष्योंका प्रमाण २५२ न्तके लक्षण व परस्पर भेद १६२ पर्याप्त मनुप्य मिथ्यादृष्टियोंका १७४ काल और क्षेत्रकी अपेक्षा प्रमाण और खंडित आदिके द्वारा सामान्य देव मिथ्याष्टियोंका उसका कथन प्रमाण १६३ पर्याप्त मनुष्यराशिमेंले गुणस्थान- १७५ सासादन गुणस्थानसे लेकर प्रतिपन्नराशिके घटा देनेपर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक २६१ २६२ २६४ प्रमाण २६६ २६७ २६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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