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________________ क्रम नं. द्रव्यप्रमाणानुगम-विषयसूची विषय पृष्ठ नं. क्रम नं. विषय ८५ असंख्यातके नामादि ग्यारह भेद विकल्पके द्वारा उक्त राशिकी और उनका स्वरूप १२३-१२५ प्ररूपणा प्रकृतगणनासंख्यातसे प्रयोजन ९९ सासादनसे लेकर असंयतसम्यतथा शेष असंख्यातोंके वर्णनकी ग्दष्टि गुणस्थान तक प्रत्येक गुणसार्थकता १२५ स्थानमें सामान्य नारकियोंका ८७ गणनासंख्यातके जघन्यपरीता प्रमाण संख्यात आदि नौ भेद, तथा गणस्थान-प्रतिपन्न सामान्य प्रकृतमें मध्यम असंख्यातासं नारकियोंको गुणस्थान-प्रतिपन्न ख्यातका ग्रहण ओघप्रमाण के समान मान लेने८८ तीन वार वर्गित संवर्गितराशिसे पर आनेवाले दोषका परिहार १ असंख्यातगुणी तथा छह द्रव्य १०१ ओघ असंयतसम्यग्दृष्टि-अवहारप्रक्षिप्तराशिसे असंख्यातगुणी हीन कालके आश्रयसे गुणस्थान राशिसे प्रयोजन और उक्त राशि प्रतिपन्न देव, तिर्यंच और नारयोंका स्वरूप-निदर्शन कियोंके प्रमाण लाने के लिए अव८९ सामान्य नारक मिथ्यादृष्टियोंका हारकाल उत्पन्न करनेकी विधि कालकी अपेक्षा प्रमाण व हेतु। और उनका प्रमाण .९० क्षेत्रप्रमाणसे पहले काल प्रमा प्रथम पृथिवीमें नारकियोंका __णके वर्णनकी सार्थकता प्रमाण ९१ नारक मिथ्यादृष्टियोंकी कालकी सामान्य नारकोंके प्रमाण समान अपेक्षा गणना करनेका प्रकार प्रथम प्रथिवीके नारकाका प्रमाण ९२ नारकसामान्य मिथ्याष्टियोंका माननेपर उत्पन्न होनेवाली । क्षेत्रकी अपेक्षा प्रमाण आपत्तिका परिहार और विशे९३ नारकसामान्य मिथ्याष्टियों की षताका प्रतिपादन विष्कम्भसूचीका प्रमाण |१०४ प्रथम नरकके मिथ्यादृष्टि नार९४ सूत्रपठित 'अंगुल' शब्दसे कोंकी विष्कंभसूची और अवहारसूच्यंगुलके ग्रहणका सप्रमाण काल समर्थन १०५ उक्त नारकोंका प्रकारान्तरसे ९५ वर्गस्थानमें खंडित आदिके द्वारा अवहारकाल १६४ विष्कंभसूचीका प्ररूपण १३५ १०६ प्रत्येक पृथिवीके प्रति अवहार९६ नारकसामान्य मिथ्यादृष्टियोंके काल, प्रक्षेप शलाकाएं और प्रमाण लानेकेलिए विष्कंभसूचीके विष्भसूचीमें अपनयनरूपबलसे भागहारकी उत्पत्ति १४१ संख्याके प्रमाणका प्रतिपादन ९७ वर्गस्थानमें प्रमाण आदिके द्वारा १०७ सामान्य अवहारकालमात्र छह अवहारकालका निरूपण १४२ पृथिवियोंके द्रव्यका आश्रय लेकर ९८ नारक सामान्य मिथ्यादृष्टि प्रत्येक पृथिवीमें अवहारकाल प्रक्षेपराशिका प्रमाण अवहारकालसे शलाकाएं निकालनेका विधान किस प्रकार आता है, यह बता १०८ उक्त सातों अवहारकालोंके मिलाकर प्रमाण, कारण, निरुक्ति और नकी विधि और उनसे प्रथम . १६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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