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षटखंडागमकी प्रस्तावना चौदहों गुणस्थानोंकी जीवराशियोंके प्रमाण-प्ररूपणके पश्चात् उनका भागाभाग और फिर उनका अल्पबहुत्व बतलाया गया है। भागाभागमें सामान्य राशिको लेकर विभाग करते हुए सबसे अल्प राशि तक आये हैं । अल्पबहुत्वमें सबसे छोटी राशिसे प्रारंभ करके गुणा और योग (सातिरेक) करते हुए सबसे बड़ी राशि तक पहुंचे हैं। इस अल्पबहुत्वका तीन प्रकारसे प्ररूपण किया गया है, स्वस्थान, परस्थान और सर्वपरस्थान । स्वस्थानमें केवल अवहारकाल और विवक्षित राशिका अल्पबहुत्व बतलाया गया है। परस्थानमें अवहारकाल, भाज्य तथा अन्य जो राशियां उनके प्रमाणके बीच में आ पड़ती हैं उनका और विवक्षित राशिका अल्पबहुत्व दिखाया गया है। तथा सर्वपरस्थानमें उक्त राशियोंके अतिरिक्त अन्य राशियोंसे भी अल्पबहुत्व दिखाया गया है। (पृ. १०१-१२१)
४ जीवराशिका मार्गणास्थानोंकी अपेक्षा प्रमाण-प्ररूपण गुणस्थानोंमें जीवप्रमाण–प्ररूपणके पश्चात् गति आदि चौदह मार्गणाओं व उनके भेद-प्रभेदोंमें जीवराशिका प्रमाण दिखलाया गया है और यहां प्रत्येक राशिका प्रमाण, भागाभाग और अल्पबहुत्व यथाक्रमसे समझाया गया है । जिसप्रकार गुणस्थानोमें प्रथम मिथ्यादृष्टिके प्रमाण समझानेमें आचार्यने गणितकी अनेक प्रक्रियाओंका उपयोग करके दिखाया है, उसी प्रकार मार्गणास्थानोंमें प्रथम नरकगतिके प्रमाणप्ररूपणमें भी गणितविस्तार पाया जाता है। (देखो पृ. १२१-२०५)
उक्त प्रमाण-विवेचन बड़ी सूक्ष्मता और गहराईके साथ किया गया है, किन्तु आचार्यने अंकसंदृष्टि कायम नहीं रखी, जिससे सामान्य पाठकोंको विषयका बोध होना सुगम नहीं है । अतएव हम यहांपर उन सब मार्गणाओंकी पृथक् पृथक् प्रमाण-प्ररूपक अंकसंदृष्टियां आचार्यद्वारा कल्पित अंकोंके आधारसे बनानेका प्रयत्न करते हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य अनन्त, असंख्यात व संख्यातके भीतर राशियोंके अल्पबहुत्वका कुछ स्थूल बोध कराना मात्र है । प्रत्येक मार्गणाके भीतर संपूर्ण जीवराशिका समुच्चय प्रमाण १६ ही रखा गया है। किन्तु सूक्ष्म दृष्टिसे परीक्षण करनेपर एक दूसरी मार्गणाओंकी अंकसंदृष्टियोंमें परस्पर वैषम्य दृष्टिगोचर हो सकता है। यह सर्वजीवराशिके लिये केवल १६ जैसी अल्प संख्या लेकर समस्त मार्गणाओंके प्रभेदोंको उदाहृत करनेमें प्रायः अनिवार्य ही है। एक राशि दूसरी राशिसे जितनी विशेष व जितनी गुणित अधिक है उसका अनुमान इन अंकोंसे कदापि नहीं करना चाहिये। यहां तो सिर्फ एक मार्गणाके भीतर राशियोंकी परस्पर अधिकता या अल्पताका ही क्रम जाना जा सकता है । यद्यपि गणितके सूक्ष्म विचारसे यह वैषम्य भी संभवतः दूर किया जा सकता था, किन्तु उससे फिर संदृष्टियां सुगम होने की अपेक्षा दुर्गम सी हो जाती, जिससे हमारा अभिप्राय पूर्ण नहीं होता। चूंकि यहां प्रत्येक मार्गणाके भीतर जीवराशियोंका प्रमाणक्रम निर्दिष्ट करना अभीष्ट है, अतएव राशियां बहुत्वसे अल्पत्वकी और क्रमसे रखी गई हैं, उनके रूढक्रमसे नहीं। हां, सिद्ध सर्वत्र अन्त
असंख्यातवें भाग हैं। इममें भी असंयप्तसम्यग्दृष्टि सबसे आधिक, इनके असंख्यात माग मिश्रगुणस्थानीय, इनके प्रख्यात माग सासादन गुणस्थानाय तथा इनके असंख्यातवें माग संयतासंयत जीव हैं।
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