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________________ Alimauswimmisnahavina छक्खंडागमे जीवहाणं [१, २, १०८. सजोगिकेवली ओघं ॥ १७८ ॥ कुदो ? खइयसम्मत्तेण विणा सजोगिकेवलीणमणुवलंभा । वेदगसम्माइट्ठीसु असंजदसम्माइटिप्पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदा त्ति ओघं ॥ १७९॥ एत्थ ओघरासी चेव त्थोवूणो वेदगरासी होदि तेणोत्तं ण विरुज्झदे । उवसमसम्माइट्ठीसु असंजदसम्माइटि-संजदासंजदा ओघ ॥१८०॥ एदे दो वि रासीओ ओघअसंजदसम्माइट्ठि-संजदासंजदाणमसंखेजदिभागमेत्ता जदि वि होति, तो वि पलिदोवमस्स असंखेजदिभागत्तेण समाणत्तमत्थि त्ति ओघमिदि भणिदं । सेसं सुगमं । विभाक्तिका निर्देश नहीं बन सकता है। अर्थात् सूत्र में आया हुआ 'चउण्हं' यह पद प्रथमा विभाक्तिरूप है, षष्ठी नहीं, इसलिये गुणस्थानोंका विशेषण नहीं हो सकता है। शेष कथन सुगम है। सयोगिकेवली जीव ओघप्ररूपणाके समान हैं ॥ १७८ ॥ चूंकि सयोगिकेवली जीव क्षायिकसम्यक्त्वके विना नहीं पाये जाते हैं, इसलिये उनका प्रमाण ओघप्ररूपणाके समान है। वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थानतक जीव ओघनरूपणाके समान हैं ॥ १७९ ॥ असंयतसम्यग्दृष्टि गुपस्थानसे लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थानतक ओघराशि ही कुछ कम वेदकसम्यग्दृष्टि जीवराशि होती है, इसलिये ओघत्व विरोधको प्राप्त नहीं होता है। __उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें असंयंतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत जीव ओघप्ररूपणाके समान हैं ॥ १८० ॥ ये दोनों भी राशियां ओघ असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयतोंके असंख्यातवें भागप्रमाण होती हैं, तो भी पल्योपमके असंख्यातवें भागत्वकी अपेक्षा उपशमसम्यग्दृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयतोंकी ओघ असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयतोंके साथ समानता है, इसलिये सुत्रमें 'ओघ' ऐसा कहा है। शेष कथन सुगम है। १क्षायोपशामिकसम्यग्दृष्टिषु असंयतसम्यग्दृष्टयादयोऽप्रमत्तान्ताः सामान्योक्तसंख्या: । स. सि. १,८. तत्तो य वेदमुवसमया । आवलिअसंखगुणिदा असंखगुणहीणया कमसो ॥ गो. जी. ६५.. २ प्रतिषु — त्योदूणो' इति पाठः । ३ औपशमिकसम्यग्दृष्टिषु असंयतसम्यग्दृष्टिसंयतासंयताः पल्योपमासंख्येयमागप्रमिताः । स. सि. १,८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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