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________________ छक्खंडागमे जीवाणं [१, २, १७१. . कुदो ? अण्णलेस्साभावादो। अजोगिणो अलेस्सिया । कुदो ? कम्मलेवणिमित्तजोग-कसायाभावा। जोगस्स कधं लेस्साववएसो १ ण, लिंपदि त्ति जोगस्स वि लेस्साववएससिद्धीदो। __ भागाभागं वत्तइस्सामो । सव्वजीवरासिमणंतखंडे कए बहुखंडा तिलेस्सिया होति। सेसमणंतखंडे कए बहुखंडा अलेस्सिया होति । सेसं संखेज्जखंडे कए बहुखंडा तेउलेस्सिया होति । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा पम्मलेस्सिया । सेसेगभागो सुक्कलेस्सिया। तिलेस्सियरासिमावलियाए असंखेज्जदिभाएण खंडेऊण तत्थेगखंड तदा पुध दृविय सेसे बहुभागे घेत्तूण तिणि समपुंजे करिय अवणिदेगखंडमावलियाए असंखेअदिभाएण खंडिय तत्थ बहुखंडे पढमपुंजे पक्खित्ते किण्हलेस्सिया । सेसेगखंडमावलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिय बहुखंडे विदियपुंजे पक्खित्ते णीललेस्सिया। सेसेगखर्ड तदियपुंजे पक्खित्ते काउलेस्सिया । तदो काउलेस्सियरासिमर्णतखंडे कए बहुखंडा मिच्छाइद्विणो । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा असंजदसम्माइट्ठिणो। सेसं संखेज्जखंडे कए चूंकि अपूर्वकरण आदि गुणस्थानोंमें शुक्ललेश्याको छोड़कर दूसरी लेश्या नहीं पाई जाती है. इसलिये अपूर्वकरण आदि गुणस्थानों में ओघप्रमाण ही शकलेश्यावालोंका प्रमाण है। अयोगी जीव लेश्यारहित हैं, क्योंकि, अयोगी गुणस्थानमें कर्मलेपका कारणभूत योग और कषाय नहीं पाया जाता है। शंका-केवल योगको लेश्या यह संक्षा कैसे प्राप्त हो सकती है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, जो लिंपन करती है वह लेश्या है' इस निरुक्तिके भनुसार योगके भी लेश्या संशा सिद्ध हो जाती है। अब भागाभागको बतलाते हैं-सर्व जीवराशिके अनन्त खंड करने पर बहुभाग. प्रमाण कृष्ण, नील और कापोत इन तीन लेश्यावाले जीव हैं। शेष एक भागके अनन्त खंड करने पर बहुभाग लेश्यारहित जीव हैं। शेष एक भागके संख्यात खंड करने पर बहुभाग तेजोलेश्यावाले जीव हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर बहुभाग पद्मलेश्यावाले जीव हैं। शेष एक भागप्रमाण शुक्ललेश्यावाले जीव हैं। कृष्ण, नील और कापोत इन तीन लेश्यासे युक्त जीवराशिको आवलीके असंख्यातवें भागसे खंडित करके उनमें से एक खंडको पृथक् स्थापित करके और शेष बहुभागके समान तीन पुंज करके घटाकर पृथक रक्खे हुए एक बंडको आवलीके असंख्यातवें भागसे खंडित करके वहां जो बहुभाग आवे उसे प्रथम पुंजमें मिला देने पर कृष्णलेश्यावाले जीवोंका प्रमाण होता है। शेष एक भागको आवलीके असंख्यातवें भागसे खंडित करके बहुभाग दूसरे पुंजमें मिला देने पर नीललेश्यावाले जीवोंका प्रमाण होता है। शेष एक भाग तीसरे पुंजमें मिला देने पर कापोतलेश्यावाले जीवोंका प्रमाण होता है। अनन्तर कापोतलेश्यावाली राशिके अनन्त खंड करने पर बहुभाग मिथ्यारष्टि जीव हैं। शेष एक भागके असंख्यात बंड करने पर बहुभाग भसंयतसम्यग्दृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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