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________________ १५८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, २, १५१० बहुखंडा ओहिदंसणिसंजदासंजददव्वं होदि । सेसं जाणिय वत्तव्यं । अप्पाबहुगं तिविहं सत्थाणादिभेएण । सत्थाणे पयदं। चक्खुदंसणिमिच्छाइट्टिसत्थाणस्स तसपज्जत्तमिच्छाइटिसस्थाणभंगो। सासणादीणं सत्थाणस्स ओघसस्थाणभंगा। परत्थाणे पयदं । अचवखुदंसणीसु सव्वत्थोवा उवसामगा । खवगा संखेज्जगुणा । अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । उवरि ओघपंचिंदियं व वत्तव्वं' जाव पलिदोवमं ति। तदो मिच्छाइद्विणो अणंतगुणा । एवं चेव चक्खुदंसणिपरत्थाणप्पाबहुगं वत्तव्यं । णवरि पलिदोवमादा उवरि चक्खुदंसणिमिच्छाइट्ठिणो असंखेज्जगुणा । ओहिदसणीणमोहिणाणिभंगो । केवलदसणीणं केवलणाणिभंगो । सवपरत्थाणे पयदं । सव्वत्थोवा ओहिदंसणउवसामगा। खवगा संखेज्जगुणा । चक्खुदंसणि-अचमवुदंसणिउवसामगा संखज्जगुणा । खवगा संखेज्जगुणा। ओहिदंसणअप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । दुदंसणिअप्पमत्तसंजदा संखेज्ज ....... अवधिदर्शनी संयतासंयतोंका द्रव्य होता है। शेष भागाभागका कथन जानकर करना चाहिये। स्वस्थानादिकके भेदसे अल्पबहुत्व तीन प्रकारका है। उनमेंसे स्वस्थानमें अल्पबहुत्व प्रकृत है- चक्षुदर्शनी मिथ्यादृष्टियोंका स्वस्थान अल्पबहुत्व बस पर्याप्त मिथ्यादृष्टियोंके स्वस्थान अलाव हुत्वके समान है। सासादनसम्यग्दृष्टि आदिका स्वस्थान अल्पबहुत्व ओघस्वस्थान अल्पबहुत्वके समान है। ___अब परस्थानमें अल्पबहुत्व प्रकृत है- अचक्षुदर्शनियोंमें सबसे स्तोक उपशामक जीव हैं। क्षएक जीव उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं। अप्रमत्तसंयत जीव क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। इसके ऊपर पल्योपमतक भोघ पंचेन्द्रियोंके परस्थान अल्पबहुत्यके समान कथन करना चाहिये ।। जीव अनन्तगुणे हैं। इसीप्रकार चक्षुदर्शनियोंके परस्थान अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये। इतना विशेष है कि पल्योपमसे ऊपर चक्षुदर्शनी मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातगुणे हैं। अघधिदर्शनवालोंका अल्पब हुत्व अवधिज्ञानियोंके अल्पबहुत्वके समान जानना चाहिये । केवलदर्शनचालोंका केवलज्ञानियोंके अल्पबहत्वके समान जानना चाहिये। अब सर्वपर स्थानमें अल्पबहुत्व प्रकृत है- अवधिदर्शनी उपशामक जीव सबसे स्तोक हैं । अवधिदर्शनी क्षपक जीव उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं। चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी उपशामक जीव अवधिज्ञानी क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। वे ही क्षपक जीव अपने उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं । अवधिदर्शनी अप्रमत्तसंयत जीव चक्षु और अचक्षुदर्शनवाले क्षपकोंसे ख्यातगुणे हैं। वे ही प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। दो दर्शनवाले भप्रमत्तसंयत जीव अवधिदर्शनी प्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। वे ही प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। दो दर्शनवाले असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल दो १ प्रतिषु · आंघ पंचिंदिय वत्तव्यं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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