________________
१५२ ]
[ १, २, १५४.
परत्थापय । सव्वत्थोवा सामाइय-छेदोवडावणसुद्धिसंजदउवसामगा । तेसिं खवगा संखेज्जगुणा । अपमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । परिहारसुद्धिसंजदेसु सव्वत्थोवा अपमत्तसंजदा । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । सुहुमसां पराइय सुद्धिसंजदेसु सव्वत्थोवा उवसामगा । खवगा संखेज्जगुणा । जहाक्खादसंजदेसु सव्वत्थोवा उवसामगा । खवगा संखेज्जगुणा । सजोगिकेवली संखेज्जगुणा । संजदासंजदेसु परत्थाणं णत्थि । असंजदेसु सव्वत्थोवो असंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो । सम्मामिच्छाइडिअवहार कालो असंखेज्जगुणो । सासणसम्माइट्ठिअवहारकालो संखेज्जगुणा । तस्सेव दव्वमसंखेज्जगुणं । एवं यव्वं जाव पलिदोवमं ति । तदो मिच्छाइट्ठी अनंतगुणा ।
खंडाग
सव्वपरत्थाणे पयदं । सव्वत्थोवा मुहुमसांपराइयमुद्धिसंजदा । परिहारमुद्धिसंजदा संखेज्जगुणा । जहाक्खाद सुद्धिसंजदा संखेज्जगुणा । सामाइय-छेदोवट्टावण सुद्धिसंजदा दो वितुल्ला संखेजगुणा । असंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो । एवं यव्त्रं जाव पलिदोवमं ति । तदो उवरि मिच्छाइट्ठी अनंतगुणा ।
एवं संजममग्गणा गदा ।
अब परस्थान में अल्पबहुत्व प्रकृत है- सामायिक और छेदोपस्थापनशुद्धिसंयत उपशामक जीव सबसे स्तोक हैं । उन्हींके क्षपक उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं । वे ही अप्रमत्तसंयत जीव क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं । वे ही प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयतों से संख्यातगुणे हैं । परिहारविशुद्धिसंयतों में अप्रमत्तसंयत जीव सबसे स्तोक हैं। प्रमत्तसंयत जीव उनसे संख्यातगुणे है । सूक्ष्मसपरायिकशुद्धिसंयतों में उपशामक जीव सबसे थोड़े हैं । क्षपक जीव उनसे संख्यातगुणे हैं । यथाख्यात संयतों में उपशामक जीव सबसे थोड़े हैं। क्षपक जीव उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं । सयोगिकेवली जीव क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं । संयतासंयतों में परस्थान अल्पबहुत्व नहीं पाया जाता है। असंयतों में असंयतसम्यग्दृष्टियों का अवहारकाल सबसे स्तोक है। सम्यग्मिथ्या दृष्टियों का अवहारकाल असंयत सम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । सासादन सम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल सम्यग्मिथ्यादृष्टियों के अवहार काल से संख्यातगुणा है । उन्हीं सासादन सम्यग्दृष्टियों का द्रव्य उन्हींके अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । इसीप्रकार पल्योपमतक ले जाना चाहिये । पल्योपमसे मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणे हैं ।
अब सर्वपरस्थानमें अल्पबहुत्व प्रकृत है- सूक्ष्मसांपरायिकशुद्धिसंयत जीव सबसे स्तोक हैं । परिहारविशुद्धिसंयत जीव उनसे संख्यातगुणे हैं । यथास्यातशुद्धिसंयत जीव परिहारविशुद्धिसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं । सामायिक और छेदोपस्थापनशुद्धिसंयत जीव दोनों समान होते हुए यथाख्यातसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं । असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल उक्त दोनों संयतों के प्रमाणसे असंख्यातगुणा है । इसीप्रकार पल्योपमतक ले जाना चाहिये । पोपमसे ऊपर मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणे हैं।
इसप्रकार संयममार्गणा समाप्त हुई ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org