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१, २, १३५.] दव्वपमाणाणुगेम कसायमग्गणापमाणपरूवणं [१२० भागत्तादो। देवेसु चउकसायगुणपडिवण्णरासी ण समाणो तदद्धाणाणं समाणत्ताभावादो । तं जहा- देवेसु सव्वत्थोवा कोधद्धा । माणद्धा संखेज्जगुणा । मायद्धा संखेज्जगुणा । लोभद्धा संखेज्जगुणा । णेरईएसु सव्वत्थोवा लोभद्धा । मायद्धा संखेज्जगुणा । माणद्धा संखेज्जगुणा । कोधद्धा संखेज्जगुणा । एत्थ देवगदिअद्धाणं समासं काऊण ओघअसंजदरासिं खांडय चउप्पडिरासिं काऊण परिवाडीए कोधादि'अद्धाहि गुणिदे सग-सगरासीओ भवति । एवं सम्मामिच्छाइट्ठि-सासणसम्मादिट्ठीणं पि कायव्वं । संजदासजदाणं पुण तिरिक्खगइअद्धासमास काऊण ओघसंजदासंजदरासि खंडिय चदुप्पडिरासिं करिय कमेण कोधादिअद्धाहि गुणिदे सग-सगरासीओ भवंति । एदेण वीयपदेण एदेसिमवहारकालुप्पत्ती वुच्चदे। तं जहा- ओघअसंजदसम्माइट्ठिअवहारकालं संखेज्जरूवेहि खंडिय लद्धं तम्हि चेव पक्खित्ते लोभकसाइअसंजदसम्माइडिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेजरूवेहि गुणिदे मायकसाइअसंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरूवेहिं
देवों में चारों कषायवाली गुणस्थानप्रतिपन्न जीवराशि समान नहीं है, क्योंकि, उन चारों कषायोंके काल समान नहीं हैं । आगे इसी विषयका स्पष्टीकरण करते हैं- देवों में क्रोधका काल सबसे स्तोक है। मानका काल उससे संख्यातगुणा है। मायाका काल मानके कालसे संख्यातगुणा है। लोभका काल मायाके कालसे संख्यातगुणा है। नारकियों में लोभका काल सबसे स्तोक है। मायाका काल लोभके कालसे संख्यातगुणा है। मानका काल मायाके कालसे संख्यातगुणा है। क्रोधका काल मानके कालसे संख्यातगुणा है। यहां देवगतिके कषायसंबन्धी कालका योग करके उससे देवोंकी ओघ असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशिको खंडित करके जो लब्ध आवे उसकी चार प्रतिराशियां करके उन्हें परिपाटीकमसे क्रोधादिकके कालोसे गुणित करने पर अपनी अपनी राशियां होती हैं। इसीप्रकार सम्यग्मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशियोंका भी करना चाहिये। संयतासंयतोंका प्रमाण लाते समय तो तिर्यंचगतिसंबन्धी कषायोंके कालका योग करके और उससे ओघसंयतासंयत राशिको खंडित करके जो लब्ध आवे उसकी चार प्रतिराशियां करके क्रमसे क्रोधादिकके कालोसे गुणित करने पर अपनी अपनी राशियां होती हैं । इस बीजपदके अनुसार इन पूर्वोक्त राशियोंके अवहारकालकी उत्पत्तिको बतलाते हैं। वह इसप्रकार है- ओघ असंयतसम्य. ग्दृष्टियोंके अवहारकालको संख्यातसे खंडित करके जो लब्ध आवे उसे उसी अवहारकालमें मिला देने पर लोभकषायवाले असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है। इस लोभ असंयतसम्यग्दृष्टि अवहारकालको संख्यातसे गुणित करने पर मायाकषायवाले असंयत
१ पुह पुह फसायकालो णिरये अंतोमुहुत्तपरिमाणो। लोहादी संखगुणा देवेमु य कोहपहुदीदो। सबसमासेणवहिदसगसगरासी पुणो वि संगुणिदे । सगसगगुणगारेहिं य सगसगरासीण परिमाणं ॥ गो. जी. २९६, २९७.
२ प्रतिषु ' कोधाओ' इति पाठः ।
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