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द्रव्यप्रमाणानुगमकी उत्पत्ति समाधान-प्रथम भागमें कुल टिप्पणियोंकी संख्या ८५५ है। उनमेंसे दिगम्बर ग्रन्थोंसे ६२२ और श्वेताम्बर ग्रन्थोंसे २२८ तथा अन्य ग्रन्थोंसे ५ टिप्पणियां ली गई हैं । यदि ग्रन्थसंख्याकी दृष्टिसे भी देखा जाय तो टिप्पणीमें उपयोग किये गये ग्रन्थोंकी संख्या ७७ है, जिनमें दिगम्बर ग्रन्थ ४०, श्वताम्बर ग्रन्थ ३०, अजैन ग्रन्थ १, व कोष, व्याकरण, अलंकारादि विषयक ग्रन्थोंकी संख्या ६ है। इससे स्पष्ट है कि अधिकांश तुलना किन ग्रन्थोंपरसे की गई है। जहां जिस ग्रन्थकी जो टिप्पणी उपयुक्त प्रतीत हुई वह ली गई है। इसमें ध्येय यही रखा गया है कि इस सिद्धान्त विषयसे सम्बन्ध रखनेवाले सभी साहित्यकी ओर पाठकोंकी दृष्टि जा सके।
७ द्रव्यप्रमाणानुगम
१ द्रव्यप्रमाणानुगमकी उत्पत्ति षटखंडागमके प्रस्तुत भागमें जीवद्रव्यके प्रमाणका ज्ञान कराया गया है, अर्थात् यहां यह बतलाया गया है कि समस्त जीवराशि कितनी है, तथा उसमें भिन्न भिन्न गुणस्थानों व मार्गणास्थानोंमें जीवोंका प्रमाण क्या है । स्वभावतः प्रश्न उत्पन्न होता है कि इस अत्यन्त अगाध विषयका वर्णन आचार्योने किस आधारपर किया है ? यह तो पूर्वभागोंमें बता ही आये हैं कि षट्खंडागमका बहुभाग विषय-ज्ञान महावीर भगवान्की द्वादशांगवाणीके अगभूत चौदह पूर्वी से द्वितीय आग्रायणीय पूर्वके कर्मप्रकृति नामक एक अधिकार-विशेषमेंसे लिया गया है। उसमेंसे भी द्रव्यप्रमाणानुगमकी उत्पत्ति इस प्रकार बतलाई गई है
__ कर्मप्रकृतिपाहुड, अपरनाम वेदनाकृत्स्नपाहुड (वेयणकसिणपाहुड) के कृति, वेदना आदि चौवीस अधिकारोंमें छठवां अधिकार 'बंधन' है, जिसमें बंधका वर्णन किया गया है । इस बंधन के चार अर्थाधिकार हैं, बंध, बंधक, बंधनीय और बंधविधान । इनमेंसे बंधक नामक द्वितीय अधिकारके एकजीवकी अपेक्षा स्वामित्त्व, एकजीवकी अपेक्षा काल, आदि ग्यारह अनुयोगद्वार हैं। इन ग्यारह अनयोगद्वारोंमें से पांचवां अनुयोगद्वार द्रव्यप्रमाण नामका है और वहींसे प्रकृत द्रव्यप्रमाणानुगम लिया गया है । ( देखा षटखंडागम, प्रथम भाग, पृ. १२५-१२६) .. यहां प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि जब जीवट्ठाणकी सत, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर और अल्पबहुत्त्व, ये ह प्ररूपणायें बंधविधानके प्रकृतिस्थानबंध नामक अवान्तर अधिकारके आठ अनुयोगद्वारोंमेंसे ली गई हैं, तब यह द्रव्यप्रमाणानुगम भी वहींसे क्यों नहीं लिया, क्योंकि, वहां भी तो यह अनुयोगद्वार यथास्थान पाया जाता था? इसका उत्तर यह दिया गया है कि प्रकृतिस्थानबंधके द्रव्यानुयोगद्वारमें ' इस बंधस्थानके बंधक जीव इतने हैं। ऐसा केवल सामान्य रूपसे कथन किया गया है, किन्तु मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानोंकी अपेक्षा कथन नहीं किया गया। बंधक अधिकारमें
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