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________________ ३९२] छक्खंडागमे जीवाणं [१, २, १०८. पक्खित्ते कायजेगिअसंजदसम्माइडिअवहारकालो होदि। तम्हि आवलियाए असंखेजदिभाएण भागे हिदे लद्धं तम्हि चेव पक्खित्त वेउव्यियअसंजदसम्माइट्ठिअवहारकालो होदि। तम्हि संखेज्जवहि गुणिदे वचिजोगिअसंजदसम्माइटिअवहारकालो होदि.। तं हि संखेजरूबंहि खंडिय लद्धं तम्हि चेव पक्खित्ते असच्चमोसवचिजोगिअसंजदसम्म इटिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे सच्चमोसवचिजोगिअसंजदसम्माइटिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरूबेहि गुणिदे मोमवचिजोगिअसंजदसम्माइटिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे सच्चवचिजोगिअसंजदसम्माइडिअवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे मणजोगिअवहारकालो होदि । तं हि संखेज्जरूवेहि खंडिय लद्धं तम्हि चेव पक्खिते असच्चमोसम गजोगिअवहारकालो होदि । ( तम्हि संखेजस्वेहि गुणिदे सच्चमोसमणजोगिअवहारकालो होदि । ) तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे मौसमणजोगिअवहारकालो होदि। तम्हि संखेज्जरूवहि गुणिदे सच्चमणजोगिअवहारकालो होदि । तम्हि आवलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदे ओरालियकायजोगिलब्ध आवे उसे उसी ओघ असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालमें मिला देने पर काययोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है । इस काययोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालको आवलीके असंख्यातवें भागसे भाजित करने पर जो लब्ध आवे उसे उसी काययोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालमें मिला देने पर वैक्रियिककाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है । इस वैक्रियिककाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालको संख्यातसे गुणित करने पर वचनयोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है। इस वचनयोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालको संख्यातसे खंडित करके जो लब्ध आवे उसे उसी वचनयोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालमें मिला देने पर अनुमय वचनयोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है । इस अनुभय घचनयोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालको संख्यातसे गणित करने पर उभय' वचनयोगी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है। इस उभय वचनयोगी असंयतसम्य सम्यग्दृष्टियोंके अवहारकालको संख्यातसे गुणित करने पर मृषावचनयोगी असंयतसम्य. ग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है । इसे संख्यातसे गुणित करने पर सत्यवचनयोगी असंयतग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है। इस सत्यवचनयोगियोंके अवहारकालको संख्यातसे गुणित करने पर मनयोगियोंका अवहारकाल होता है। इस मनयोगियोंके अवहारकालको संख्यातसे खंडित करके जो लब्ध आवे उसे उसी मनोयोगियों के अवहारकालमें मिला देने पर अनुभय मनोयोगियोंका अवहारकाल होता है। इस अनुभय मनोयोगियोंके अवहारकालको संख्यातसे गुणित करने पर उभयमनोयोगियोंका अवहारकाल होता है। इस उभय मनोयोगियोंके अवहारकालको संख्यातसे गुणित करने पर मृषामनोयोगियोंका अवहारकाल होता है। इस मृषामनोयोगियोंके अवहारकालको संख्यातसे गुणित करने पर सत्यमनोयोगियोंका अवहारकाल होता है । इस सत्यमनोयोगियोंके अवहारकालको आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर औदारिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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