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________________ ३६४ ] छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, २, १०२. विदियपुंजे पक्खिते सुहुमआउकाइया होंति । सेसेयखंड मसंखेज्जलोएण खंडिय बहुखंडा तदियपुंजे पक्खित्ते हुमपुढविकाइया होंति । सेसेयखंडं चउत्थपुंजे पक्खित्ते हुमउकाइया होंति । सग-सगरासिं संखेज्जखंडे कदे तत्थ बहुखंडा अप्पप्पणो पज्जता होंति । एयखंडं तेसिमपज्जत्ता' । पुव्वमवणिदमसंखेज्जलोग सिमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा बादरवाउअपज्जत्ता होंति । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा बादरआउकाइय अपज्जत्ता होंति । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा बादरपुढविअपज्जत्ता होंति । सेसमसंखेज्जखंडे क बहुखंडा बादरणिगोदपदिट्टिदा अपज्जत्ता होंति । से समसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा बादरवणफदिकाइयअपज्जत्ता होंति । सेसमसंखेज्जखंडे कए बहुखंडा बादरते उकाइयअपज्जत्ता होंति । सेसमसंखेञ्जखंडे कए बहुखंडा बादरवाउकाइयपज्जत्ता होंति । बादरआउकाइयबादरपुढविकाइय- बादरणिगोदपदिदि-बादरवणप्फइपत्तेगसरीर पज्जत्तागमेवं चैव णेयव्वं । तदो सेसे असंखेज्जखंडे कए बहुखंडा तसकाइयअपज्जत्ता' होंति । सेसमसंखेज खंडे करके उनमें से बहुभागको दूसरे पुंजमें मिला देने पर सूक्ष्म अष्कायिक जीवोंका प्रमाण होता है । पुनः शेष एक भागको असंख्यात लोकप्रमाणसे खंडित करके उनमेंसे बहुभागको तीसरे पुंजमें मिला देने पर सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीवोंका प्रमाण होता है । पुनः शेष एक खंडको चौथे पुंज में मिला देने पर सूक्ष्म तेजस्कायिक जीवोंका प्रमाण होता है। इन चारों राशियों में से अपनी अपनी राशिके संख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण अपने अपने पर्याप्त जीवों का प्रमाण होता है और एक भागप्रमाण उन उनके अपर्याप्त जीव होते हैं । पुनः पहले निकाल कर पृथक् स्थापित की हुई असंख्यात लोकप्रमाण राशिके असंख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण वादर वायुकायिक अपर्याप्त जीव होते हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण बादर अकायिक अपर्याप्त जीव होते हैं। शेष एक भाग असंख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त जीव होते हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण बादर निगोदप्रतिष्ठित वनस्पति अपर्याप्त जीव होते हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त जीव होते हैं । शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त जीव होते हैं। शेष एक भागके असंख्यात खंड करने पर उनमें से बहुभागप्रमाण बादरवायुकायिक पर्याप्त जीव होते हैं। आगे बादर अष्कायिक, बादर पृथिवीकायिक, बादर निगोदप्रतिष्ठित और बादर वनस्पति प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवों का भागाभाग इसीप्रकार ले जाना चाहिये | चादर प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवोंके प्रमाणके अनन्तर जो एक भाग शेष रहे उसके १ गो. जी. २०७. २ प्रतिषु ' बादरणिगोदकाइया ' इति पाठः । ३ अप्रतौ 'तसकाइ असंजदा '; आ प्रतौ 'तसकाइयअसंखेज्जा'; क प्रप्तौ 'तसकाश्यअसं.' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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