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१, २, ९७.] दव्वपमाणाणुगमे पुढविकाइयादिपमाणपरूवणं [ ३५९ गुणत्तं जाणाविजदे। तं जहा-पुबिल्लसुत्ते गुणिज्जमाणरासी कप्पो, एत्थ पुण तदो असंखेज्जगुणो लोगो त्ति वुत्तो । कप्पम गुणगाररासीदो घणलोगगुणगारो अणंतगुणो । कुदो ? एदस्स सुत्तस्स अवयवभूदसोलसवडियअप्पाबहुगवयणादो जाणिजदे । तम्हा सफलो एस सुत्तारंभो त्ति घेत्तव्यं ।
__ संपहि एत्थ धुवरासी उप्पाइज्जदे । तं जहा- पुढविकाइय-आउकाइय-तेउकाइयवाउकाइय-तसकाइए अकाइए च, एदेसिं चेव पमाणं वग्गं वणप्फइयकाइयभाजिदं च सव्वजीवरासिम्हि पक्खित्ते वणप्फइकाइयधुवरासी होदि । वणप्फइकाइयवदिरित्तसेसरासिणा' सधजीवरासिमोवहिय लद्धरूवृणेण भजिदसव्यजीवरासिं तम्हि चेव पक्खित्ते वणप्फइकाइयधुवरासी होदि त्ति वुत्तं भवदि । एदेण धुवरसिणा सव्वजीवरासिस्सुवरिमवग्गे भागे हिदे वणप्फइकाइयरासी आगच्छदि । वणप्फइकाइयधुवरासिमसंखेचलोगेण खंडिदेयखंडं तम्हि चेव पक्खित्ते सुहुमवणप्फइकाइयधुवरासी होदि । एदेण पुवुत्तअसंखेजलोगवणप्फदिकाइयधुवरसिभागहारेण रूवाहिएण वणप्फइकाइयधुवरासिं गुणिदे बादरवणप्फइकाइयधुवरासी
गुण्यमान राशि कल्प कही गई है, परंतु इस सूत्रमें कल्पसे असंख्यातगुणा लोक गुण्यमान राशि कहा गया है । तथा कल्पकी गुणकार राशिसे घनलोकका गुणकार अनन्तगुणा है।
शंका-यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान - इस सूत्रके अवयवभूत सोलहप्रतिक अल्पबहुत्वके वचनसे यह जाना जाता है।
इसलिये इस सूत्रका आरंभ सफल है, ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिये।
अब यहां ध्रुवराशि उत्पन्न की जाती है। उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है-पृथिवीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, त्रसकायिक और अकायिक, इन जीवराशियोंके प्रमाणको तथा वनस्पतिकायिक जीवराशिके प्रमाणसे भाजित उक्त राशियों के प्रमाणके वर्गको सर्व जीवराशिमें मिला देने पर वनस्पतिकायिक ध्रुवराशि होती है । वनस्पतिकायिक जीवराशिको छोड़कर शेष राशिके द्वारा सर्व जीवराशिको भाजित करके जो लब्ध आवे उसमेंसे एक कम करके जो शेष रहे उससे सर्व जीवराशिको भाजित करके जो लब्ध आवे उसे उसी सर्व जीवराशिमें मिला देने पर वनस्पतिकायिक जीवराशिकी ध्रुवराशि होती है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इस ध्रुवराशिसे सर्व जीवराशिके उपरिम वर्गके भाजित करने पर वनस्पतिकायिक जीवराशि आती है। वनस्पतिकायिक ध्रुवराशिको असंख्यात लोकप्रमाणसे खंडित करके जो एक खंड लब्ध आवे उसे उसी वनस्पतिकायिक ध्रुवराशिमें मिला देने पर सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवराशिकी ध्रुवराशि होती है। ऊपर जो असंख्यात लोकप्रमाण वनस्पतिकायिक ध्रुवराशिका भागहार कह आये हैं उसमें एक मिला कर जो प्रमाण हो उससे वनस्पतिकायिक ध्रुवराशिके गुणित करने पर बादर वनस्पतिकायिक ध्रुवराशि होती है । पुन:
१ प्रतिषु 'सेसरासी' इति पाठः ।
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