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________________ ३४.] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, २, ८७. गुणगारेहिं सगसगसामण्णअवहारकालेसु गुणिदेसु सगसगबादराणमवहारकाला भवंति । . पुणो सुत्ताविरुद्धण आइरिओवएसेण सुत्तं व पमाणभूदेण बादराणमद्धच्छेदणए वत्तइस्सामो । तं जहा- एगसागरोवमादो एगं पलिदोवमं घेत्तूण तमावलियाए असंखेजदिभागेण खंडिय तत्थेगखंडं पुध द्वविय सेसबहुभागे तम्हि चेव पक्खित्ते बादरतेउक्काइयअद्धच्छेदणयसलागा हवंति। जं पुध दृविदेयखंडं तं पुणो वि आवलियाए असंखेजदिभाएण खंडिय तत्थेगखंडमवणिय बहुखंडे पुन्धरासिं दुप्पडिरासिं काऊण पक्खित्ते बादरवणप्फइपत्तेयसरीराण अद्धच्छेदणयसलागा हवंति । एवं बादरणिगोदपदिविद-बादरपुढवि-बादरआऊणं च वत्तव्यं । अंते अवणिदएगखंडं बादरआउक्काइयअद्धच्छेदणयसलागासु पक्खित्ते चादरवाउक्काइयअद्धच्छेदणयसलागा सायरोवममेत्ता जादा। बादरतेउक्काइयअद्धच्छेदणए विरलिय विगं करिय अण्णोण्णब्भत्थे कदे बादरतेउक्काइयरासी उप्पज्जदि । अहवा घणलोयछेयणएहिं बादरतेउक्काइयअद्धच्छेदणएसु ओवटिदेसु लद्धं विरलेऊण रूवं पडि जो पहले असंख्यात लोकप्रमाण गुणकार उत्पन्न किये थे उनसे अपने अपने सामान्य अवहारकालोंके गुणित करने पर अपने अपने बादर जीवोंके अवहारकाल होते हैं। ___अब आगे सूत्रके समान प्रमाणभूत सूत्राविरुद्ध आचार्योंके उपदेशके अनुसार बादर जीवोंके अर्धच्छेद बतलाते हैं। उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है-एक सागरोपममेंसे एक पल्योपमको ग्रहण करके और उसे आवलीके असंख्यातवें भागसे खंडित करके वहां जो एक भाग लब्ध आवे उसे पृथक् स्थापित करके शेष बहुभागको उसी राशिमें अर्थात् पल्यकम सागर में मिला देने पर बादर तेजस्कायिक राशिकी अर्धच्छेद शलाकाएं होती हैं। जो एक भाग पृथक् स्थापित किया था उसे फिर भी आवलीके असंख्यातवें भागसे खंडित करके वहां जो एक भाग लब्ध आया उसे घटा कर अवशेष बहुभागको पूर्वराशि अर्थात् बादर तेजस्कायिक राशिके अर्धच्छेदोंकी दो प्रतिराशियां करके और उनमें से एकमें मिला देने पर बादर वनस्पति प्रत्येकशरीर जीवोंकी अर्धच्छेदशलाकाएं होती हैं। इसीप्रकार बादर निगोदप्रतिष्ठित, बादर पृथिवीकायिक और बादर अप्कायिक जीवराशिके अर्धच्छेदोंका कथन करना चाहिये । अन्तमें अपनीत एक खंडको बादर अप्कायिक जीवोंकी अर्धच्छेद शलाकाओं में मिला देने पर सागरोपमप्रमाण बादर वायुकायिक जीवोंकी अर्धच्छेदशलाकाएं हो जाती हैं। बादर तेजस्कायिक राशिकी अर्धच्छेदशलाकाओंका विरलन करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकको दोरूप करके परस्पर गुणित करने पर बादर तेजस्कायिक जीवराशि उत्पन्न होती है। अथवा, घनलोकके अर्धच्छेदोंसे बादर तेजस्कायिक राशिके अर्धच्छेदोंके १ अवलि असंखभागेणवहिदपल्लूणसायरद्धाछिदा । बादरतेपणिभूजलवादाणं चरिमसायरं पुण्ण ॥ गो. जी. २१३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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