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________________ ३४० छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, २, ८७. तदुप्पत्तिणिमित्तरासीणं वग्गिदसंवग्गिदे काऊण तेउकाइयरासी उप्पाएदव्या । तेउक्काइयरासिं भागहारं काऊण तस्सुवरिमवग्गं विहज्जमाणरासिं करिय खंडिद-भाजिद-विरलिदअवहिदाणि जाणिऊण वत्तव्याणि । तस्स पमाणमुवरिमवग्गस्स असंखेञ्जदिभागो। कारणं, तेउकाइयरासिणा उवरिमवग्गे भागे हिदे तेउक्काइयरासी चेव आगच्छदि त्ति । एत्थ संदेहाभावा णिरुत्ती ण वत्तव्वा । वियप्पो दुविहो, हेट्ठिमवियप्पो उवरिमवियप्पो चेदि । एत्थ हेडिमवियप्पो णत्थि, तेउक्काइयरासिस्स विहज्जमाणरासिपढमवग्गमूलमत्तत्तादो । उवरिमवियप्पो तिविहो, गहिदो गहिदगहिदो गहिदगुणगारो चेदि । तत्थ गहिदं वत्तइस्सामो। तेउक्काइयरासिणा उवरिमवग्गे भागे हिदे तेउक्काइयरासी आगच्छदि । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणये कदे तेउक्काइयरासी आगच्छदि । अहवा तेउक्काइयरासिणा तस्सुवरिमवग्गं गुणेऊण तदुवरिमवग्गे भागे हिदे तेउक्काइयरासी आगच्छदि । तस्सद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणये कदे वि तेउक्काइयरासी आगच्छदि । अट्ठरूवे वत्तइस्सामो । तेउक्काइयरासिणा तेउक्काइयउवरिमवग्गसमाणअट्ठरूववग्गं गुणेऊण तस्सुवरिमवग्गं मोत्तूण करके और उसकी उत्पत्तिकी निमित्तभूत राशियोंको वर्गितसंवर्गित करके तेजस्कायिकराशि उत्पन्न कर लेना चाहिये । तेजस्कायिकराशिको भागहार करके और उसके उपरिम वर्गको भज्यमानराशि करके खंडित, भाजित, विरलित और अपहृतका जानकर कथन करना चाहिये। उसका प्रमाण तेजस्कायिक राशिके उपरिम वर्गका असंख्यातवां भाग है। इसका कारण यह है कि तेजस्कायिकराशिसे उसके उपरिम वर्गके भाजित करने पर तेजस्कायिक जीवराशि ही आती है। यहां पर संदेह नहीं होनेसे निरुक्तिके कथनकी आवश्यकता नहीं है। विकल्प दो प्रकारका है, अधस्तन विकल्प और उपरिम विकल्प। परंतु यहां पर अधस्तन विकल्प नहीं पाया जाता है, क्योंकि, तेजस्कायिकराशि भज्यमान राशिके प्रथम घर्गमूलप्रमाण है। - उपरिम विकल्प तीन प्रकारका है, गृहीत, गृहीतगृहीत और गृहीतगुणकार । उनमेंसे गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं- तेजस्कायिक राशिसे उसके उपरिम वर्गके भाजित करने पर तेजस्कायिक राशिका प्रमाण आता है। उक्त भागहारके अर्धच्छेदप्रमाण उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी तेजस्कायिक राशि आती है। अथवा, तेजस्कायिक राशिके प्रमाणसे उसके उपरिम वर्गको गुणित करके लब्ध राशिका उपरिम वर्गके उपरिम वर्गमें भाग देने पर तेजस्कायिक राशिका प्रमाण आता है। उक्त भागहारके अर्धच्छे इप्रमाण उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी तेजस्कायिक राशिका प्रमाण आता है। ____ अब अष्टरूपमें उपरिम विकल्पको बतलाते हैं-तेजस्कायिक राशिसे तेजस्कायिक राशिके उपरिम वर्गके समान घनके उपरिम वर्गको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका तेजस्कायिक राशिके उपरिम घर्गको छोड़कर उसके उपरिम वर्गमें भाग देने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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