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________________ १, २, ८७.] दव्वपमाणाणुगमे पुढविकाइयादिपमाणपरूवणं [३३५ असंखेजदिभागमेत्तवग्गसलागा हवंति । तस्सद्धच्छेदणयसलागा असंखेज्जा लोगा । रासी वि असंखेज्जलोगमेत्तो जादो । पुणो उद्विदमहारासिं विरलेऊण तत्थ एक्केकस्स रूवस्स उद्विदमहारासिपमाणं दाऊण वग्गिदसंवग्गिदं करिय सलागरासीदो अवरेगं रूवमवणेयव्वं । ताधे अण्णोण्णगुणगारसलागा दोण्णि । वग्गसलागा अद्धच्छदणयसलागा रासी च असंखेजा लोगा। एवमेदेण कमेण णेदव्वं जाव लोगमेत्तसलागरासी समत्तो ति । ताधे अण्णोण्णगुणगारसलागपमाणं लोगो । सेसतिगमसंखेजा लोगा। पुणो उद्विदमहारासिं विरलेऊण तं चेव सलागभूदं ठविय विरलिय-एक्केक्कस्स रूवस्स उप्पण्णमहारासिपमाणं दाऊण वग्गिदसंवग्गिदं करिय सलागरासीदो एगरूवमवणेयव्यं । ताधे अण्णोण्णगुणगारसलागा लोगो रूवाहिओ । सेसतिगमसंखेज्जा लोगा। पुणो उप्पण्णरासि विरलिय एवं पडि उप्पण्णरासिमेव दाऊण वग्गिदसंवग्गिदं करिय सलागरासीदो अण्णेगरूवमवणेयव्वं । तदो अण्णोण्णगुणगारसलागाओं लोगो दुरूवाहिओ। सेसतिगमसंखेज्जा लोगा । एवमेदेण कमेण धर्गितसंवर्गित करनेसे उत्पन्न हुई उस राशिकी वर्गशलाकाएं पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र होती हैं, उस उत्पन्न राशिकी अर्धच्छेदशलाकाएं असंख्यातलोकप्रमाण होती है और वह उत्पन्न राशि भी असंख्यात लोकप्रमाण होती है। पुनः इस उत्पन्न हुई महाराशिको विरलित करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति उसी उत्पन्न हुई महाराशिको देयरूपसे देकर परस्पर वर्गितसंवर्गित करके शलाकाराशिसे दूसरीवार एक कम करना चाहिये। तब अन्योन्य गुणकार शलाकाएं दो होती हैं और वर्गशलाकाएं अर्धच्छेदशलाकाएं, तथा उत्पन्नराशि असंख्यात लोकप्रमाण होती हैं। इसीप्रकार लोकप्रमाण शलाकाराशि समाप्त होनेतक इसी क्रमसे ले जाना चाहिये । तब अन्योन्य गुणकार शलाकाओंका प्रमाण लोक होगा और शेष तीन राशियां अर्थात् उस समय उत्पन्न हुई महाराशि और उसकी वर्गशलाकाएं तथा अर्धच्छेदशलाकाएं असंख्यात लोकप्रमाण होंगी। पुनः इसप्रकार उत्पन्न हुई महाराशिको विरलित करके और इसी राशिको शलाकारूपसे स्थापित करके विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति उसी उत्पन्न हुई महाराशिके प्रमाणको देयरूपसे देकर वर्गितसंवर्गित करके शलाकाराशिमेंसे एक कम कर देना चाहिये। तब अन्योन्य गुणकार शलाकाएं एक अधिक लोकप्रमाण होती हैं। शेष तीनों राशियां अर्थात् उत्पन्न हुई महाराशि, वर्गशलाकाएं और अर्धच्छेदशलाकाएं असंख्यात लोकप्रमाण होती हैं। पुनः उत्पन्न हुई महाराशिको विरलित करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति उसी उत्पन्न हुई महाराशिको देकर वर्गितसंवर्गित करके शलाकाराशिमेंसे दूसरीवार एक घटा देना चाहिये। उस समय अन्योन्य गुणकार शलाकाएं दो अधिक लोकप्रमाण होती हैं। शेष तीनों राशियां असंख्यात लोकप्रमाण १ प्रतिषु '- सलागादो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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