SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 377
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८१] छक्खडागमे जीवट्ठाणं [ १, २, ७२. पाणदमिच्छाइटिअवहारकालो होदि । कुदो ? जिणलिंगं घेत्तूण दव्वसंजमेण द्विदसंजदाणं बर्ण मणुसेसु अणुवलंभादो । तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे आरणच्चुदमिच्छाइटिअबहारकालो होदि । एत्थ कारणं पुव्वं व वत्तव्यं । एवं णेयव्यं जाव उवरिमउवरिमगेवज्जमिच्छाइडिअवहारकालो त्ति । तम्हि संखेज्जस्वेहि गुणिदे णवाणुद्दिसअसंजदसम्माइटि. अवहारकालो होदि । तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे अणुत्तरविजय-वइजयंत-जंयत-अवराइदविमाणवासियअसंजदसम्माइडिअवहारकालो होदि। तमावलियाए असंखेजदिभाएण गुणिदे आणद-पाणदसम्मामिच्छाइटिअवहारकालो होदि । कुदो ? उवक्कमणजीवाणं थोवत्तादो । तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे आरणच्चुदसम्मामिच्छाइटिअवहारकालो होदि । एवं णेयव्यं जाव उवरिमउवरिमगेवज्जसम्मामिच्छाइट्ठिअवहारकालो त्ति । तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे आणद-पाणदसासणसम्माइडिअवहारकालो होदि । कुदो ? थोबुवक मणकालत्तादो । तम्हि संखेज्जरूवेहि गुणिदे आरणच्चुदसासणसम्माइट्ठिअवहारकालो होदि । एवं णेयव्यं जाव उवरिमउवरिमगेवज्जसासणसम्माइटिअवहारकालो ति। एदेहि अवहारकालेहि खंडि अवहारकाल होता है, क्योंकि, जिनलिंगको स्वीकार करके द्रव्यसंयमके साथ स्थित हुए बहुतसे संयतोंका मनुष्योंमें सद्भाव नहीं पाया जाता है। आनत और प्राणतसंबन्धी मिथ्यादृष्टि अवहारकालको संख्यातसे गुणित करने पर आरण और अच्युतके मिथ्याष्टियोंका अवहारकाल होता है। यहां कारण पहलेके समान कहना चाहिये, अर्थात् जिनलिंगको स्वीकार करके द्रव्यसंयमके साथ बहुतसे मनुष्य नहीं होते हैं, इसलिये आरण और अच्युत में कम मिथ्यावाष्टि पाये जाते हैं । इसीप्रकार उपरिम उपरिम वेयकके मिथ्यादृष्टि अवहारकाल तक ले जाना चाहिये। उपरिम उपरिम प्रैवेयकके मिथ्याटि अवहारकाल को संख्यातसे गुणित करने पर नौ अनुदिशोके असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है। इसे संख्यातसे गुणित करने पर विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित इन चार अनुत्तर विमानवासी असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है । इसे आघलोके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर आनत और प्राणतके सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता है, क्योंकि, यहां पर सम्यग्मिथ्यात्वके साथ उत्पन्न होनेवाले जीव थोड़े हैं। आनत और प्राणतके सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके अवहारकालको संख्यातले गुणित करने पर आरण और अच्युतके सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता है । इसीप्रकार उपरिम उपरिम प्रैवेयकके सम्यग्मिथ्यादृष्टिसंबन्धी अवहारकालतक ले जाना जाहिये। उपरिम उपरिम प्रैवेयकके सम्यग्मिथ्यादृष्टि अवहारकालको संख्यातले गुणित करने पर आनत और प्राणतके सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है, क्योंकि, सासादनसम्यग्दृष्टियोंका उपक्रमणकाल स्तोक है। आनत और प्राणतके सासादनसम्यग्दृष्टि अवहारकालको संख्यातसे गुणित करने पर आरण भौर अच्युतके सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अवहारकाल होता है। इसीप्रकार उपरिम उपरिम १देवाणं अवहारा होति असंखेण ताणि अवहरिय । तत्व य पक्खित्ते सोहम्मीसाण अवहारा॥ सोहम्म. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy