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छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, २, ६८. संपहि खुद्दाबंधेण सामण्णेण जीवपमाणपरूवएण जाओ विक्खंभसूईओ णेरइय-सोहासाणभवणवासियदेवाणं वुत्ताओ ताओ चेव विक्खंभसूईओ एत्थ वि जीवट्ठाणे मिच्छाइद्विपरूवणाए अण्णूणाहियाओ वुत्ताओ । तं जहाअंगुलस्स वग्गमूलं विदियवग्गमूलगुणिदेण इदि एसा खुद्दाबंधे णेरइयविक्खंभसूई उत्ता । तासिं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलं अंगुलवग्गमूलगुणिदेण इदि - एसा भवणवासियविक्खंभमूई खुद्दाबंधे उत्ता । तासिं सेढीण विक्खंभसूई अंगुलविदियवग्गमूलं तदियवग्गमूलगुणिदेण इदि एसा सोहम्मीसाणदेवविक्खंभसूई खुद्दाबंधे वुत्ता । एत्थ वि गेरइय-भवणवासिय-सोहम्मीसाणमिच्छाइहीणं विक्खंभसूईओ एदाओ चेव वुत्ताओ । एदं च ण घडदे, सामण्णविसेसपरूवणाणमेगत्तविरोहादो। तम्हा एत्थ वृत्तविक्खंभसूईहि ऊणियाहि खुद्दाबंधवुत्तविक्खंभसूईहि वा अधियाहि होदव्वमिदि चोदगो भणदि । एत्थ परिहारो वुच्चदे । जीवटाणवुत्तविखंभसईओ संपुण्णाओ खुद्दाबंधम्हि वुत्तविक्खंभसूईओ
शंका-सामान्यसे जीवराशिके प्रमाणका प्ररूपण करनेवाले खुद्दाबंधके द्वारा नारकी, सौधर्म-ऐशान और भवनवासी देवोंकी जो विष्भसूचियां कही हैं, न्यूनता और अधिकतासे रहित वे ही विष्कंभसूचियां यहां जीवट्ठाण में भी नारकी, सौधर्म ऐशान और भवनवासी देवोंसंबन्धी मिथ्यादृष्टि जीवराशिकी प्ररूपणामें कहीं हैं। आगे इसी विषयका स्पष्टीकरण करते हैं- सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलको द्वितीय वर्गमूलसे गुणित करने पर जितना लब्ध आवे उतनी खुद्दाबंधमें सामान्य नारकियोंकी विष्कंभसूची कही है। भवनवासियोंके प्रमाणरूपसे जो असंख्यात जगश्रेणियां बतलाई हैं उन जगश्रेणियोंकी विष्कंभसूची सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलको द्वितीय वर्गमूलसे गुणित करने पर जितना लब्ध आवे उतनी है, यह भवनवासियोंकी विष्कंभसूची खुद्दाबंधमें कही है। सौधर्म और ऐशान कल्पवासी देवोंके प्रमाणरूपसे जो असंख्यात जगश्रेणियां बतलाई हैं उन जगश्रेणियोंकी विष्कंभसूची, सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलको तृतीय वर्गमूलसे गुणित करके जो लब्ध आवे, उतनी है, यह सौधर्म और ऐशान कल्पवासी देवोंकी विष्कंभसूची खुदाबंधमें कही है। यहां जीवट्ठाणमें भी नारकी, भवनवासी और सौधर्म-ऐशान मिथ्यादृष्टि जीवोंकी विष्कंभसूचियां ये ही (खुद्दाबंधमें कही हुई) कही है। परंतु यह कथन घटित नहीं होता है, क्योंकि, सामान्य प्ररूपणा और विशेष प्ररूपणा इन दोनोंको एक मानने में विरोध आता है। अतएव जीवट्ठाणमें ओ विष्कंभसूचियां कही गई हैं वे खुद्दाबंधमें कही गई विष्कंभसूचियोंसे न्यून होनी चाहिये या खुदाबंधमें कही गई विष्कंभसूचियां यहां जीवट्ठाणमें कही गई विष्कंभसूचियोंसे अधिक होनी चाहिये, ऐसा शंकाकारका कहना है ?
समाधान- आगे इस शंकाका परिहार करते हैं- जीवट्ठाणमें जो विष्कंभसूचियां कही गई है वे संपूर्ण हैं और खुद्दाबंधमें कही गई विष्कंभसूचियां जीवट्ठाणमें कही गई विकभसूचियोंसे साधिक हैं।
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