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________________ २६६ ] छक्खंडागमे जीवहाणं [१, २, ५३. गुणगारो ? संखेज्जा समया । एवं चेव मणुसिणीसु वि परत्थाणं वत्तव्वं । सव्वपरत्थाणे पयदं- सव्वत्थोवा अजोगिकेवलिणो। चत्तारि उवसामगा संखेजगुणा । चत्तारि खवगा संखेज्जगुणा । सजोगिकेवली संखेज्जगुणा । अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा। पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । संजदासंजदा संखेज्जगुणा। सासणसम्माइट्ठिणो संखेज्जगुणा । सम्मामिच्छाइद्विणो संखेजगुणा । असंजदसम्माइट्ठिणो संखेजगुणा। मणुसपज्जत्तमिच्छाइट्ठिणो संखेज्जगुणा । मणुसिणीमिच्छाइट्ठिणो संखेज्जगुणा । मणुसअपजत्तअवहारकालो असंखेजगुणो। मणुसअपजत्तदव्यमसंखेजगुणं । उवरि जाव लोगो ति ताव जाणिऊण वत्तव्यं । मणुसिणीगुणपडिवण्णाणं पमाणमेत्तियमिदि णावहारिदं, तम्हा सव्वपरत्थाणप्पाबहुए तेसिं परूवणा ण कदा। एवं मणुसगई समत्ता। देवगईए देवेसु मिच्छाइट्टी दव्वपमाणेण केवडिया, असंखेज्जा ॥ ५३॥ मिथ्यादृष्टि पर्याप्त मनुष्योंका द्रव्यप्रमाण संख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । इसीप्रकार मनुष्यनियों में भी परस्थान अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये। . अब सर्व परस्थानमें अल्पबहुत्वका कथन प्रकृत है- अयोगिकेवली मनुष्य सबसे स्तोक हैं। चारों गुणस्थानवर्ती उपशामक अयोगियोंसे संख्यातगुणे हैं। चारों गुणस्थानवर्ती क्षपक उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं। सयोगिकेवली क्षपोंसे संख्यातगुणे हैं। अप्रमत्तसंयत मनुष्य सयोगियोंसे संख्यातगुणे हैं । प्रमत्तसंयत मनुष्य अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं । संयतासंयत मनुष्य प्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्य संयतासंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्य सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे संख्यातगुणे हैं । असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य सम्यग्मिथ्याष्टियोंसे संख्यातगुणे हैं । मनुष्य पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीव असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे संख्यातगुणे हैं। मनुष्यनी मिथ्यादृष्टि जीव पर्याप्त मनुष्योंसे संख्यातगुणे हैं। मनुष्य अपर्याप्त अवहारकाल मनुष्यनी मिथ्यादृष्टियोंसे असंख्यातगुणा है। मनुष्य अपर्याप्तोंका द्रव्य उन्हींके अवहारकालसे असंख्यात गुणा है । इसके ऊपर लोक तक जानकर अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये। गुणस्थानप्रतिपन्न मनष्यनियोंका प्रमाण इतना है. यह निश्चित नहीं है, इसलिये सर्व परस्थान अल्पबहुत्वका कथन करते समय गुणस्थानप्रतिपन्न उनके प्रमाणकी प्ररूपणा नहीं की। इसप्रकार मनुष्यगतिका कथन समाप्त हुआ। देवगतिप्रतिपन्न देवोंमें मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? असंख्यात हैं ॥ ५३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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