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________________ १, २, ५२.] दव्वपमाणाणुगमे मणुसगदिअप्पाबहुगपरूवणं [२६५ कालवग्गो। अहवा पदरंगुलस्स असंखेजदिभागो असंखेज्जाणि सूचिअंगुलाणि । केतियमेत्ताणि ? विदियवग्गमूलमत्ताणि । सेढी असंखेज्जगुणा । को गुणगारो? सगअवहारकालो। एवं मणुसअपज्जत्ताणं पि सत्थाणप्पाबहुगं वत्तव्यं । सासणादीणं सत्थाणं णत्थि । मणुसपज्जत्त-मणुसिणीणं पि णत्थि सत्थाणप्पाबहुगं ।। परत्थाणे पयदं- सव्वत्थोवा चत्तारि उवसामगा। पंच खवगा संखेज्जगुणा। सजोगिकेवली संखेज्जगुणा । अप्पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा । संजदासजदा संखेज्जगुणा। सासणसम्माइट्ठी संखेजगुणा। सम्मामिच्छाइट्ठी संखेजगुणा। असंजदसम्माइट्ठी संखेज्जगुणा । तदो मिच्छाइट्ठिअवहारकालो असंखेज्जगुणो। को गुणगारो ? सगअवहारकालस्स संखेजदिभागो । को पडिभागो ? असंजदसम्माइट्टिणो । तस्सेव दवमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? पुवमणिदो। सेढी असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? पुत्वं भणिदो। मणुसपज्जत्तेसु सम्वत्थोवा चत्तारि उवसामगा । पंच खवगा संखेज्जगुणा । एवं जाव असंजदसम्माइट्टि त्ति । तदो मिच्छाइट्ठिदव्वं संखेज्जगुणं । को गुणकार है जो प्रतरांगुलका असंख्यातवां भाग असंख्यात सूच्यंगुलप्रमाण है। असंख्यात सूच्यंगुलोंका प्रमाण कितना है? सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलप्रमाण है। मनुष्यमिथ्यादृष्टि द्रव्यसे जगश्रेणी असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? अपना अवहारकाल गुणकार है। इसीप्रकार मनुष्य लब्धपर्याप्तोंके स्वस्थान अल्पबहुत्वका भी कथन करना चाहिये । सासादनसम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानवर्ती मनुष्योंका स्वस्थान अल्पबहुत्व नहीं है। उसीप्रकार पर्याप्त मनुष्य और मनुष्यनियोका भी स्वस्थान अल्पबहुत्व नहीं है। अब परस्थान अल्पबहुत्वका आश्रय लेकर प्रकृत विषयका वर्णन करते है-चारों गुणस्थानवर्ती उपशामक सबसे स्तोक हैं। पांचों गुणस्थानवर्ती क्षपक संख्यातगुणे हैं। सयोगिकेवली क्षपकोंसे संख्यातगुणे हैं। अप्रमत्तसंयत जीव सयोगिकेवलियोंसे संख्यातगुणे हैं। प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। संयतासंयत मनुष्य प्रमत्तसंयतोंसे संख्यातगुणे हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्य संयतासंयत मनुष्योंसे संख्यातगुणे हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्य सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्योंसे संख्यातगुणे हैं। असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्योंसे संख्यातगुणे हैं। असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्यों के प्रमाणसे मनुष्य मिथ्यादृष्टि अवहारकाल असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? अपने अवहारकालका संख्यातवां भाग गुणकार है। प्रतिभाग क्या है ? असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्योंका प्रमाण प्रतिभाग है । उन्हीं मिथ्यादृष्टि मनुष्योंका द्रव्यप्रमाण अवहारकालसे असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? पहले कह आये है। मनुष्य मिथ्यादृष्टि द्रव्यप्रमाणसे जगश्रेणी असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? पहले कह आये हैं। मनुष्य पर्याप्तकोंमें चारों गुणस्थानवर्ती उपशामक सबसे थोडे हैं। पांचों गुणस्थानवर्ती क्षपक उपशामकोंसे संख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार उत्तरोत्तर असंयतसम्यग्दृष्टि तक अल्पबहुत्व समझना चाहिये। असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्योंके प्रमाणसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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