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२५८ ] छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, २, ४५. ७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६ एत्तियमेत्तमणुसपज्जत्तरासिम्हि संखेज्जपदरंगुलेहि गुणिदे माणुसखेत्तादो संखेज्जगुणत्तप्पसंगा। माणुसलोगखेत्तफलपमाणपदरंगुलेसु संखेज्जुस्सेहंगुलमेत्तोगाहणो मणुसपज्जत्तरासी सम्मादि त्ति णासंकणिज्ज, सव्वुक्कस्सोगाहणमणुसपज्जत्तरासिम्हि संखेज्जपमाणपदरंगुलमेत्तोगाहणगुणगारमुहवित्थारुवलंभादो। सबट्ठसिद्धिदेवाणं पि मणुसपज्जत्तरासीदो संखेज्जगुणाणं ण सव्वसिद्धिविमाणे जंबूदीवपमाणे ओगाहो अत्थि, तत्तो संखेज्जगुणोगाहणाणं तत्थावट्ठाणविरोहादो। तम्हा मणुसपज्जत्तरासी एयकोडाकोडाकोडीओ सादिरेया चि घेत्तच्चा।
इसे दो समुद्रोंके विना ढाईद्वीपकी जम्मृद्वीपप्रमाण की गई खंडशलाकाओं अर्थात् १३२९ से गुणित कर देने पर दो समुद्रोंके बिना ढाईद्वीपका क्षेत्रफल आया११४३८७८५४४७४९८६३४९०२५
जना
१०८८७१६८
-प्रमाण प्रतर योजन
इसके प्रमाणप्रतरांगुल बनानेके लिये पूर्वोक्त मापके प्रमाणानुसार ४४२०००°४४°४२४ से गुणित करने पर इष्ट क्षेत्रफल आया
६१९७०८४६६६८१६४१६२०००००००० प्रमाण प्रतर अंगुल.
अब यदि ७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६ इतनी मनुष्य पर्याप्त राशिको संख्यात प्रतरांगुलोंसे गुणा किया जाय तो उस प्रमाणको मनुष्य क्षेत्रसे संख्यातगुणेका प्रसंग आ जायगा। यदि कोई ऐसी आशंका करे कि मनुष्यलोकका क्षेत्रफल जो प्रमाण प्रतरांगुलोंसे लाया गया है उसमें संख्यात उत्सेधांगुलमात्र अवगाहनासे युक्त मनुष्य पर्याप्त राशि समा जायगी, सो ठीक नहीं है, क्योंकि, सबसे उत्कृष्ट अवगाहनासे युक्त मनुष्य पर्याप्त सशिमें संख्यात प्रमाण-प्रतरांगुलमात्र अवगाहनाके गुणकारका मुख विस्तार पाया जाता है। उसीप्रकार मनुष्य पर्याप्त राशिसे संख्यातगुणे सर्वार्थसिद्धिके देवोंकी भी जम्बूद्वीपप्रमाण सर्वार्थसिद्धिके विमानमें अवगाहना नहीं बन सकती है, क्योंकि, सर्वार्थसिद्धि विमानके क्षेत्र फलसे संख्यातगुणी अवगाहनासे युक्त देवाका वहां पर अवस्थान मानने में विरोध आता इसलिये मनुष्य पर्याप्त राशि एक कोड़ाकोड़ाकोड़ीसे अधिक है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये ।
विशेषार्थ- मनुष्योंका निवास क्षेत्र ढाई द्वीप है, जिसका व्यास पैंतालीस लाख योजन है। इसका क्षेत्रफल १६००९०३०६५४६०१३९ योजनप्रमाण होता है। इसके प्रतरांगुल ९४४२५१०४९६८१९४३४००००००००० होते हैं, परंतु ढाई द्वीपके क्षेत्रफलमेंसे दो समुद्रोंका
१ तललीनमधूगविमलं धूमसिलागाविचोरभयमेरू । तटहरिखझसा होति हु माणुसपज्जत्तसंखंका ॥ गो. जी. १५८. छ ति ति ख पण नव तिग चउ पण बिग नव पंच सग तिग चउरो। छ दु चउ इग पण दु छ इग अड दुदु नव सग जहन नरा ॥लो. प्र. सर्ग ७. पत्र १०८.
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