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________________ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं एत्तियमेत्तपदरंगुलेण सम्माएज्ज । मणुसखेत्तपदरंगुले आणिज्जमाणे C सत्त णव सुण्ण पंच छट्ठ णव चदु एक्कं च पंच सुष्णं च । जंबूदीवस्सेदं गणिदफलं होदि णादव्वा ॥ ७२ ॥ ७९०५६९४१५० एदम्हि तेरसंगुलं च किंचूणअर्द्धगुलं च पक्खिविय आणे-यव्वं । किंचूणपमाणं - २५६ ] सत्तसहस्सडसीदेहि खंडिदे पंचवण्णखंडाणि । अर्द्धगुलस्स हीणं करेह अद्धंगुलं शियदं ॥ ७३ ॥ ३ एदाणि जंबूदीवपदरजोयणाणि माणुसखे तजंबूदीवसलागाहि दो समुद्दसलागूणाहि गुणिय पदरंगुलाणि कायव्वाणि । आठ, खर अर्थात् छह, द्रव्य अर्थात् छह, छ्यालीस, आठ, शून्य, अचल अर्थात् सात, पदार्थ अर्थात् नौ, चन्द्र अर्थात् एक, और ऋतु अर्थात् छह,— ॥ ७१ ॥ इतने प्रतरांगुलोंके द्वारा समा जाना चाहिये । मनुष्यक्षेत्र में प्रतरांगुलोंके लाने पर सात, नौ, शून्य, पांच, छह, नौ, चार, एक, पांच, शून्य, अर्थात् सात अरब नव्वे करोड़ छप्पन लाख चौरानवे हजार एक सौ पचास योजन, यह जम्बूद्वीपका गणितफल अर्थात् क्षेत्रफल है, ऐसा जानना चाहिये ॥ ७२ ॥ ७९०५६९४१५० इस संख्या में तेरह अंगुल और कुछ कम आधा अंगुल मिलाकर मनुष्य क्षेत्र के प्रतरांगुल ले आना चाहिये। आधे अंगुल में कुछ कमका प्रमाण अर्धागुलके पचवन खंडों को अर्थात् ५५ को सात हजार अठासीसे खंडित अर्थात् भाजित करने पर जो लब्ध आवे उतना हीन अर्धागुल निश्चित करना चाहिये ॥ ७३ ॥ १ ५५ यथा ७०८८ X १ उदाहरण ही अर्धागुल. २ जम्बूद्वीपसंबन्धी इन प्रतर योजनोंको लवण और कालोद समुद्रकी शलाकाओं से न्यून मनुष्यक्षेत्र की जम्बूद्वीप प्रमाणसे की गई शलाकाओंके द्वारा गुणित करके पुनः प्रतरांगुल कर लेना चाहिये | - Jain Education International १ २ का ५५ ७०८८) = [ १,२, ४५. १ ५५ ७०३३ २ १४१७६ = १४१७६ - १ जम्बूद्वीपस्य गणितपदं वक्ष्येऽथ तत्त्वतः ॥ ३५ ॥ शतानि सप्तकोटीन नवतिः कोटयः पराः । लक्षाणि सप्तपंचाशत् षट्सहस्रोनितानि च ॥ ३६ ॥ सार्द्ध शतं योजनानां पादोन कोशयामलम् । धनूंषि पंचदश च सार्द्धं करद्वयं तथा ॥ ३७ ॥ अंकतोऽपि यो. ७९०५६९४१५० को. १ धनुः १५१५ कर २ अं. १२ लो. प्र. सर्ग १५, पत्र_ १६५. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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