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२३० ] छक्खडागमे जीवट्ठाणं
[१, २, ३१. केवडिया इदि पुच्छाणिदेसो मुत्तम पमाणपडिवायणट्ठो। असंखेज्जा इदि णिदेसो संखेज्जाणताणं पडिसेहफलो । सेसं पुव्वं व परूवेदव्वं ।
असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसाप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरति कालेण ॥ ३४॥
एत्थ पुवसत्तादो मिच्छाइट्ठि त्ति अणुवट्टावेयव्वं, अण्णहा सुत्तत्थाणुववत्तीदो । सेसं पंचिदियतिरिक्खपज्जत्तमिच्छाइटिकालपरूवणसुत्तम्हि वुत्तविहाणेण वत्तव्वं ।
(खेत्तेण पंचिंदियतिरिक्खजोणिणिमिच्छाइट्टीहि पदरमवहिरदि देवअवहारकालादो संखेज्जगुणेण कालेण ॥३५॥
एदस्स मुत्तस्स वक्खाणं कारदे । तं जहा- तिण्णिसयसहस्स-चउवीससहस्सकोडिरूवेहि देवअवहारकालं गुणिदे तदो संखेज्जगुणो पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइटिअवहारकालो होदि। अहवा छज्जोयणसदमंगुलं काऊण वग्गिदे इगवीसकोडाकोडिसयाणि तेवीसकोडाकोडीओ छत्तीसकोडिसयसहस्साणि चउसडिकोडिसहस्साणि पदरगुलाणि पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीमिच्छाइट्ठिअवहारकालो होदि । अहवा इगवीसकोडा
शेष गुणस्थानप्रतिपन्न जीवोंके निवारण करनेके लिये किया है। 'कितने हैं' इसप्रकार पृच्छारूप पदका निर्देश सूत्रकी प्रमाणताके प्रतिपादन करने के लिये किया है । 'असंख्यात' इस पदके निर्देश करनेका फल संख्यात और अनन्तका प्रतिषेध करना है। शेष व्याख्यान पहलेके समान करना चाहिये।
कालकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणियों और उत्सर्पिणियोंके द्वारा अपहृत होते हैं ॥ ३४ ॥
___ यहां पहलेके सूत्रसे मिथ्यादृष्टि इस पदकी अनुवृत्ति कर लेना चाहिये, अन्यथा सूत्रार्थ नहीं बन सकता है। शेष कथन पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त मिथ्यादृष्टियोंके प्रमाणका कालकी अपेक्षा प्ररूपण करनेवाले सूत्रके अनुसार करना चाहिये।
क्षेत्रकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टियोंके द्वारा देवोंके अवहारकालसे संख्यातगुणे अवहारकालसे जगप्रतर अपहृत होता है ॥३५॥
आगे इस सुत्रका व्याख्यान करते हैं। वह इसप्रकार है- तीन लाख चौवीस हजार करोड़ संख्यासे देवोंके अवहारकालके गुणित करने पर जो लब्ध आवे उससे भी संख्यातगुणा पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिमती मिथ्यादृष्टिसंबन्धी अवहारकाल है । अथवा, छहसौ योजनके अंगुल करके वर्ग करने पर इकवीससौ कोडाकोड़ी, तेवीस कोडाकोड़ी, छत्तीस कोड़ी लाख और चौसठ कोड़ी हजार प्रतरांगुल प्रमाण पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती मिथ्यादृष्टियोंका अवहारकाल होता
१ छस्सयजोयणकदिहिदजगपदरं जोणिणीण परिमाणं । गो. जी. १५६.
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