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छक्खडागमे जीवद्वाणं
[ १, २, २७.
तिच्चदे | संपहि अणुवयारेण उवरिमवियप्पं वत्तहस्सामा । तं जहा - आवलियाए असंखेज्जदिभाएण गुणिदपदरंगुलेण तस्सुवरिमवग्गे भागे हिदे पंचिदियतिरिक्खमिच्छाविहार कालो होदि । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि पंचिदियतिरिक्खमिच्छाइडिअवहार कालो होदि । एत्थ अद्धच्छेदणयमेलावणविहाणं चिंतिय वतव्वं । एवं संखेज्जासंखेज्जाणंतेसु णेयव्वं । अहरूवे वत्तइस्सामो । आवलियाए असंखेज्जदिभाएण पदरंगुल उवरिमवग्गं गुणेऊण तेण घणंगुलउवरिमवग्गे भागे हिदे पंचिंदियतिरिक्खमिच्छाइडिअवहार कालो होदि । तं जहा - - पदरंगुलउवरिमवग्गेण घणंगुलवरिमवग्गे मागे हिदे पदरंगुलमागच्छदि । पुणो आवलियाए असंखेजदिभाएणेपदरंगुले भागे हिदे पंचिदियतिरिक्खमिच्छा इडिअवहारकालो आगच्छदि । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि पंचिदियतिरिक्खमिच्छाइड
लाया जायगा, तब इस प्रक्रियाको अधस्तन विकल्प कहेंगे; और जब उक्त दोनों संख्याओंसे ऊपर की संख्याओं का आश्रय लेकर उक्त अवहारकाल लाया जायगा, तब उसे उपरिम विकल्प कहेंगे । आवली असंख्यातवें भागसे प्रतरांगुलको भाजित करके पंचेन्द्रिय तिर्यच अवहारकालके लाने की जो प्रक्रिया है वही वास्तव में अधस्तन या उपरिम विकल्प नहीं कहीं जा सकती है, क्योंकि, अधस्तन और उपरिम विकल्पके निश्चित करनेके लिये यहां वही आधार है | अतः वास्तव में वह मध्यम विकल्प ही है, उपरिम नहीं |
अब अनुपचारसे उपरिम विकल्पको बतलाते हैं। वह इसप्रकार है- आवलीके असंख्यातवें भागसे प्रतरांगुलको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका प्रतरांगुलके उपरिम वर्गमें भाग देने पर पंचेन्द्रिय तिर्यच मिथ्यादृष्टि अवहारकालका प्रमाण होता है । उक्त भागद्दार के जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टि अवहारकालका प्रमाण होता है । यहां पर अर्धच्छेदों के मिलाने की विधिका विचार कर कथन करना चाहिये । इसीप्रकार संख्यात, असंख्यात और अनन्तस्थानों में भी ले जाना चाहिये ।
अब अष्टरूपमें उपरिम विकल्प बतलाते हैं- आवलीके असंख्यातवें भागसे प्रतरांगुल के उपरिम वर्गको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे घनांगुलके उपरिम वर्ग के भाजित करने पर पंचेन्द्रिय तिर्येच मिध्यादृष्टि अवहारकालका प्रमाण आता है । वह इसप्रकार
- प्रतरांगुलके उपरिम वर्गसे घनांगुलके उपरिम वर्गके भाजित करने पर प्रतरांगुल आता है । पुनः आवलीके असंख्यातवें भागले प्रतरांगुलके भाजित करने पर पंचेन्द्रिय तिर्यच मिथ्याद्दष्टि अवहारकालका प्रमाण आता है । उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी पंचेन्द्रिय तिर्यंच मिथ्यादृष्टि अवहारकाल
१ प्रतिषु ' असंखेज्जासंखेज्जदिमाएण ' इति पाठः ।
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