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________________ २१४ ] छक्खंडागमे जीवाणं [ १, २, २३. गुणगारो ? वारसवग्ग मूलस्स असंखेजदिभागो असंखेज्जाणि तेरसवग्गमूलाणि डिभागो ! घणंगुलविदियवग्गमूलं । पढमपुढविमिच्छाइट्टि अवहारकालो विसेसाहिओ । केत्तियमेत्तेण ? सामण्ण अवहारकालस्स असंखेज्जदि भाग भूदपक्खेव अवहारकालमेतेण । सेढी असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? पढमपुढविमिच्छाइट्ठिविक्खं मसूई । पढमपुढविमिच्छाइदिव्यमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? पढमपुढविमिच्छाइट्टिविक्खंभसूई । सामण्णणेरइयमिच्छाइद्विदव्वं विसेसाहियं । केत्तियमेत्तेण ? सामण्णणेरइयमिच्छा इडिदव्वमसंखेज्जभाग भूदविदियादिछपुढविमिच्छाइदिव्यमेत्तेण । पदरमसंखेज्जगुणं । को गुणगारो ? अवहारकालो | लोगो असंखेज्जगुणो । को गुणगारो ? सेढी । एवं णिरयगई समत्ता । 1 अवहारकाल असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? जगश्रेणी के बारहवें वर्गमूलका असंख्यातवां भाग गुणकार है जो जगश्रेणीके असंख्यात तेरहवें वर्गमूलप्रमाण है । प्रतिभाग क्या है ? गुलका द्वितीय वर्गमूल प्रतिभाग है। सामान्य नारकियोंके मिध्यादृष्टि अवहारकाल से पहली पृथिवीके नारकियों का मिथ्यादृष्टि अवहारकाल विशेष अधिक है । कितनेमात्र विशेष से अधिक है ? सामान्य अवहारकालके असंख्यातवें भागरूप प्रक्षेप अवहारकालरूप विशेषसे अधिक है । पहली पृथिवीके मिथ्यादृष्टि अवहारकालसे जगश्रेणी असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है ? पहली पृथिवीकी मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूची गुणकार है । जगश्रेणीसे पहली पृथिवीके मिध्यादृष्टियों का द्रव्य असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? पहली पृथिवीकी मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूची गुणकार है । पहली पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यसे सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि द्रव्य विशेष अधिक है । कितनेमात्र विशेषसे अधिक है ? सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि द्रव्यके असंख्यातवें भागरूप दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक छह पृथिवियोंके मिथ्यादृष्टियों का जितना प्रमाण है तन्मात्रसे विशेष अधिक है । सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि द्रव्यसे जगप्रतर असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? अपना अवहारकाल गुणकार है । जगप्रतरसे लोक असंख्यात गुणा है । गुणकार क्या है ? जगश्रेणी गुणकार है | विशेषार्थ - सर्व परस्थान अल्पबहुत्वका कथन करते समय ऊपर गुणस्थानप्रतिपन्न भसंयतसम्यग्दृष्टि आदि सामान्य नारकियोंका अल्पबहुत्व नहीं कहा गया है । यदि इनके १ प्रतिषु • सेठी असंखेज्जगुणगारो ' इति पाठः । २ दिसावाएणं सध्वत्थोत्रा अहे सत्तमापुढवीनेरइया पुरच्छिमपच्चत्थिमउत्तरेणं, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा । दाहिणेहिंतो अहे सत्तमापुढवीनेरइए हिंतो छट्ठीए तमाए पुढवीए नेरहया पुरच्छिमपञ्च्चत्थिमउत्तरेणं दाहिणेणं असंखेज्जगुणा । दाहिणिहिंतो तमाए पुढवीनेरइए हिंतो पंचमाए धूमप्पमाए पुढवीए नेरहया पुरच्छिम पच्चत्थिमउतरेणं असंखेज्जगुणा दाहिणेणं असंखेज्जगुणा । दाहिणिहिंतो धूमप्पभापुढवीनेरह एहिंतो चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए मेरइया पुरच्छिमपच्चत्थिमउत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा । दाहिणिल्लेहिंतो पंकप्पभापुढवीनेरइएहिंतो तहयाए वालुयष्पभाए पुढवीए नेरहया पुरच्छिमपच्चत्थिमउत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा । दाहिणिले हिंतो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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