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________________ १, २, १९. ] दव्यमाणागमे णिरयगदिपमाणपरूवणं [ १९३ मिविरलणाए तिणि रुवाणि ओवट्टिदे एगरूवं तेरहखंडाणि कदे तत्थ णव खंडाणि हवंति । एदं पुव्विलतिन्हं रूवाणं पासे विरलिय एदस्सुवरि णव रुवाणि दादव्वाणि । अहवा सव्वपक्खेवरूवाणि एगवारेण आणिज्जंते । तं जहा- रूवूणहेट्ठिमविरलणमेत्तद्वाणं गंतूण जदि एगा अवहारपक्खेवसलागा लब्भदि तो उवरिमविरलणम्हि केत्तियाओ अवहारपक्खेव सलागाओ लभामो त्ति पमाणेण इच्छाए ओवट्टिदाए सव्वाओ पक्खेव - सलागाओ लब्भ॑ति । एदाओ उवरिमविरलणम्हि पक्खित्ते इच्छिदअवहारकालो होदि । एवं सव्वत्थ रासिपरिहाणिम्हि जाणिऊण समकरणं कायव्वं । अहवा सामण्णअवहारकालं विरलेऊण एकेकस्स रूवस्त जगपदरं समखंड करिय दिण्णे रूवं पडि सामण्णणेरइयमिच्छाइदिव्त्रं पावेदि । तत्थ एगरूवधरिदसामण्णणेरइय प्रति क्या प्राप्त होगा, इसप्रकार त्रैराशिक करके एक कम अधस्तन विरलनसे तीनको अपवर्तित करने पर एकके तेरह खंड करने पर उनमें से नौ खण्ड लब्ध आते हैं। इसे पूर्वोक्त तीन विरलन अंकों के पासमें विरलित करके इसके ऊपर नौ अंक दे देना चाहिये । १ उदाहरण - ५. - १=४ प्रमाणराशि; १ फलराशि; ३ इच्छाराशि । ३ १३ ९ ३४१=३÷ = तीन विरलनोंके प्रति तीन तीन रूपसे दिये हुए ३ १३ ९ अंकोंका अवहारकाल । अथवा, संपूर्ण प्रक्षेपरूप अवहारकालको एकवारमें लाते हैं । जैसे- एक कम अधस्तन विरलनमात्र स्थान जाकर यदि एक अवहारकाल प्रक्षेपशलाका प्राप्त होती है तो उपरिम विरलनमें कितनी प्रक्षेपशलाकाएं प्राप्त होंगी, इसप्रकार त्रैराशिक करके फलराशि एकसे इच्छाराशि उपरिम विरलनको गुणित करके जो लब्ध आवे उसमें एक कम अधस्तन विरलन. मात्र प्रमाण शिका भाग देने पर संपूर्ण अवहारकाल प्रक्षेपशलाकाएं आ जाती हैं । इनको उपरि विरलन में मिला देने पर इच्छित अवहारकाल होता है । इसीप्रकार सर्वत्र राशिकी हानिमें जानकर समीकरण करना चाहिये । उदाहरण - प्रमाणराशि ४ १ ३ ; फलराशि १; इच्छाराशि १६; Jain Education International १६ × १ = १६, १६ ÷ १३ ३ ४८ = प्रक्षेप अवहारकाल | १३ ४८ ९ १६+ = १९ इच्छित अवहारकाल । १३ '१३ अथवा, सामान्य अवहारकालका विरलन करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति जगप्रतरको समान खंड करके देने पर प्रत्येक एकके प्रति सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशि प्राप्त होती है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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