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१८०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, २, १९. मेसद्धाणं गंतूण एगरूवस्स परिहाणी च लब्भदि । एवं पुणो पुणो काय जाव उवरिमविरलणा परिसमत्तेत्ति । एत्थ पुण' हेट्ठिम-उवरिमविरलणाओ सरिसाओ त्ति एगमवि रूवं ण परिहायदि । पुणो एत्थ एत्तियं परिहायदि त्ति वुच्चदे । तं जहा- हेटिमविरलण रूवाहियमेतद्धाणं गंतूग जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो उवरिमविरलणम्हि किं परिहाणिं लभामो त्ति रूवाहियसेढितदियवगमूलेण सेढितदियवग्गमूले भागे हिदे एगस्वस्स असंखेज्जभागा आगच्छंति त्ति किंचूणेगरूवं सरिसच्छेदं काऊण तदियवग्गमूलम्हि अवणिदे सेढिविदियवग्गमूलं रूवाहियसेढितदियवग्गमूलेग भजिदएगभागो छह-सत्तमपुढवीमिच्छाइट्ठिदव्याणं भागहारो होदि । तेण जगसेदिम्हि भागे हिदे छट्ठसत्तमपुढविमिच्छाइट्ठिदव्वं होदि ।
पुणो सेढिछट्टमवग्गमूलं विरलिय जगसेढिं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि
और उपरि
अधस्तन विरलनमात्र स्थान जाकर एककी हानि होती है। इसप्रकार जब तक उपरिम विरलन समाप्त होवे तब तक पुनः पुनः यही विधि करते जाना चाहिये। परंतु यहां अधस्तन
परिम बिरलन समान हैं, इसलिये एक भी विरलनांककी हानि नहीं होती है। फिर भी यहां इतनी हानि होती है आगे उसीको बतलाते हैं। वह इसप्रकार है-उपरिम विरलनमें एक अधिक अधस्तन विरलनमात्र स्थान जाकर यदि एककी हानि प्राप्त होती है तो संपूर्ण उपरिम विरलनमें कितनी हानि प्राप्त होगी, इसप्रकार त्रैराशिक करके जगश्रेणीके एक अधिक तृतीय धर्गमूलसे जगश्रेणीके तृतीय वर्गमूलके भाजित करने पर एकके असंख्यात बहुभाग प्राप्त होते हैं, इसलिये कुछ कम एक.को समान छेद करके तृतीय वर्गमूलमेंसे घटा देने पर जगश्रेणीके द्वितीय वर्गमूलको जगश्रेणीके एक अधिक तृतीय वर्गमूलसे भाजित करके जो एक भाग लब्ध आवे वह छठी और सातवीं पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका भागहार होता है। उक्त भागहारसे जगश्रेणीके भाजित करने पर छठी और सातवीं पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण होता है। उदाहरण-१०२४ १०२४. यदि १ अधिक अधस्तन विरलनमात्र अर्थात्
१ ६४ वार: १०२४:५१२ =२
' ३ स्थान जाकर उपरिम विरलनमें एककी ५१२ ५१२ हानि प्राप्त होती है तो संपूर्ण उपरिम विर.
लनोंमें कितने विरलनोंकी हानि प्राप्त होगी, ६५५३६ : १२ = १५३६. इसप्रकार त्रैराशिक करने पर २१३ की हानि प्राप्त होती है । इसे उपरिम विरलन ६४ मेंसे घटा देने पर ४२३ आते हैं । इसका जग. श्रेणीमें भाग देने पर १०२४+५१२=१५३६ प्रमाण छठी और सातवीं पृथिवीका द्रव्य आता है।
अनन्तर जगश्रेणीके छठे वर्गमूलको विरलित करके और विरलित राशिके प्रत्येक १ प्रतिषु ' गुण ' इति पाठः ।
२ प्रतिषु ' जगभागो' इति पाठः ।
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