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________________ १, २, १९.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवणं [१७५ हारकालमत्तछट्ठपुढविदव्यं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि एदं पि पढमपुढविमिच्छाइटिदव्वपमाणेण पावदि। पुणो पढमपुढविमिच्छाइहिविक्खंभसूचिगुणिदसेढिविदियवग्गमूलेण सामण्णअवहारकालम्हि भागे हिदे सत्तमपुढविपक्खेव अवहारकालो आगच्छदि । तं पुचिल्लछण्हं विरलणाणं पासे विरलिय सामण्णअवहारकाल मेत्तसत्तमपुढविमिच्छाइहिदव्यं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि पढमपुढविमिच्छाइढिदव्यपमाणेण पावदि। एदाओ सत्त वि विरलणाओ घेत्तूण पढमपुढविमिच्छाइटिअवहारकालो होदि ।। तेसिं सत्तण्हं पि अवहारकालाणं मेलावणविहाणं वुच्चदे । तं जहा- सत्तमपुढविपक्खेवअवहारकालो सगपमाणेण एको हवदि । सत्तमपुढविपक्खेववहारकालपमाणेण छट्ठपुढविपक्खेवअवहारकालो सेढितदियवग्गमूलमेत्तो हवदि । पंचमपुढविपक्खेवअवहार समान खंड करके देयरूपसे देने पर विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति प्रथम पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है। उदाहरण-३२७६८४१०२४ = ३३५५४४३२; __३३५५४४३२ : ६५५३६ = ९८८१६ प्र. पृ. मि. द्र अनन्तर प्रथम पृथिवीकी मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूचीसे जगश्रेणीके दूसरे वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका सामान्य अवहारकालमें भाग देने पर सातवीं पृथिवीके आश्रयसे उत्पन्न हुई प्रक्षेप अवहारकाल शलाकाएं आती हैं। उदाहरण-१२८४ १९३ = १९३, ३२७६८ : १९३ = ३२७६८ सातवीं पृथिवीके आश्रयसे उत्पन्न हुई प्रक्षेप अवहारकाल शलाकाएं । सातवी पृथिवीके आश्रयसे उत्पन्न हुई इन प्रक्षेप अवहारकाल शलाकाओंको पूर्वोक्त छहाँ विरलनोंके पासमें विरलित करके और विरलित राशिके प्रत्येक एकके ऊपर सामान्य अवहारकालमात्र अर्थात् सामान्य अवहारकाल गुणित सातवीं पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यको समान खण्ड करके देयरूपसे दे देने पर विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति प्रथम पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है। उदाहरण-३२७६८४५१२ = १६७७७२१६, १६७७७२१६ : ३२७६८ = ९८८१६ प्र. पृ. मि. द्र. इन सातों विरलनोंको ग्रहण करके भी प्रथम पृथिवीके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका अवहारकाल होता है। आगे उन्हीं सातों अवहारकालोंके मिलाने की विधिका कथन करते हैं । वह इसप्रकार है __ सातवीं पृथिवीके आश्रयसे उत्पन्न हुआ प्रक्षेप अवहारकाल अपने प्रमाणसे एक है (३३९६८ = १ पिंडरूप) सातवीं पृथिवीके प्रक्षेपरूप अवहारकालकी अपेक्षा छठी पृथिवीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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