________________
षखंडागमकी प्रस्तावना महाधवलकी प्रतिसंबंधी शंकाओंपर आपने ही अपने दो तीन सहयोगी विद्वानोंसहित उक्त प्रतिकी जांच पड़ताल की, और बहुमूल्य परिचय भेजनेकी कृपा की। हमारे प्रकाशित व प्रकाशनीय ग्रंथांशोंका ताड़पत्रीय प्रतियोंसे मिलान भी आपके ही द्वारा किया जा रहा है। आपकी आयु इस समय पचास वर्षकी है । लगभग दस वर्षसे श्वासकी व्याधिसे पीड़ित होते हुए भी आप साहित्यसेवाके कार्यसे विश्रान्ति नहीं लेते, और प्रस्तुत सिद्धान्तप्रकाशन कार्यमें तो आप अत्यन्त तन्मयताके साथ जी तोड़कर सहयोग दे रहे हैं, जिसके सुफल पाठक इस भागमें तथा आगे प्रकाशनीय भागोंमें देखेंगे ।
२ मूडबिद्रीका इतिहास . (दक्षिण भारतका कर्नाटक देश जैन धर्मके इतिहासमें अपना एक विशेष स्थान रखता है । दिगम्बर जैन सम्प्रदायके अधिकांश सुविख्यात और प्राचीनतम ज्ञात आचार्य और ग्रंथकार इसी प्रान्तमें हुए हैं । आचार्य पुष्पदन्त, समन्तभद्र, पूज्यपाद, वीरसेन, जिनसेन, गुणभद्र, नेमिचन्द्र, चामुण्डराय आदि महान् ग्रंथकारोंने इसी भूभागको अलंकृत किया था ।)
इसी दक्षिण कर्नाटक प्रान्तमें ही मूडबिद्री नामका एक छोटासा नगर है जो शताब्दियोंसे जैनियोंका तीर्थक्षेत्र बना हुआ है । कहा जाता है कि यहां जैनधर्मका विशेष प्रभाव सन् ११०० ईस्वीके लगमग होय्सल-नरेश बल्लालदेव प्रथमके समयसे बढा । तेरहवीं शताब्दिमें यहांकी पार्श्वनाथ बसदिको तुलुवके आलूप नरेशोंसे राज्यसन्मान मिला । पन्द्रहवीं शताब्दिमें विजयनगरके हिंन्दू नरेशोंके समय इस स्थानकी कीर्ति विशेष बढ़ी। शक १३५१ ( सन् १५२९) के देवराय द्वितीयके एक शिलालेखमें उल्लेख है कि वेणुपुर (मूडबिद्री) उसके भव्यजनोंके लिये सुप्रसिद्ध है) वे शुद्ध चारित्र पालते हैं, शुभ कार्य करते हैं, और जैनधर्मकी कथाओंका श्रवण करते हैं। यहांके स्थानीय राजा भैररसने अपने गुरु वीरसेन मुनिकी प्रेरणासे यहांके चन्द्रनाथ मन्दिर को दान दिया था । सन् १९५१-५२ में यहांकी होस बसदि ( त्रिभुवनतिलक-चूडामणि व बड़ा मन्दिर ) का · भैरादेवी मण्डप ' नामसे प्रसिद्ध मुखमण्डप विजयनगर नरेश मल्लिकार्जुन इम्मडिदेवरायके राज्यमें बनाया गया था । विरूपाक्ष नरेश के राज्य उनके सामन्त विद्वरस ओडेयरने सन् १४७२-७३ में इसी बसदिको भूमिदान दिया था। यहां सब मिलाकर अठारह बसदि (जिनमन्दिर ) हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध 'गुरु बसदि ' है जहां सिद्धान्त ग्रंथोंकी प्रतियां सुरक्षित हैं और जिनके कारण वह · सिद्धान्त बसदि ' भी कहलाती है। यह नगर • जैन काशी' नामसे भी प्रसिद्ध है। यहां अब जैनियोंकी जनसंख्या बहुत कम रहगई है, किन्तु जैन संसारमें इसका पावित्र्य कम नहीं हुआ। यहांकी गुरुपरंपरा और सिद्धान्त रक्षाके लिये यह स्थान जैन धार्मिक इतिहासमें सदैव अमर रहेगा।
. देखो Salatore's Mediaeval Jainism, P. 351 ff., and, Ancient Karnataka P.410-11,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org