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________________ १, २, १७. ] toryमाणागमे णिरयगदिपमाणपरूवणं [ १४९ अच्छे कदेवि अवहारकालो आगच्छदि । एत्थ चडिदद्धाणसलागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोष्णव्भत्थरासिणा रूवूणेण जगसेढिअद्धच्छेदणए गुणिय घगुलविदियवग्गमूलस्स अद्धच्छेदणए पक्खित्ते भागहारस्स अद्धच्छेदणया हवंति । एवं संखेज्जासंखेज्जाणंतेसु वग्गट्ठाणेसु णेयव्वं । अट्ठरूवपरूवणा गदा | घणाघणे वत्तइस्लामो । गुलविदियवग्गमूलेण जगपदरं गुणेऊण घणलोगे भागे हिदे अवहारकालो आगच्छदि । केण कारणेण ? जगपदरेण घणलोगे भागे हिदे सेढी आगच्छदि । पुणो घणंगुलविदियवग्गमूलेण सेढिम्हि भागे हिदे अवहारकालो आगच्छदि । एवमागच्छदित्ति क गुणेऊण भागग्गहणं कदं । अहवा घणंगुलविदियवग्गमूलेण जगपदरं गुणेऊण तेण घणलोगं गुणेऊण घणलोगउवरिमवग्गे भागे हिदे अवहारकालो आगच्छदि । केण कारणेण ? घणलोगेण तस्सुवरिमवग्गे भागे हिदे घणलोगो आगच्छदि । पुणो वि जगपदरेण घणलोगे भागे हिदे सेढी आगच्छदि । पुणो घणंगुलविदियवग्गमूलेण सेढिम्हि उदाहरण – उक्त भागहार के १६ + १ = १७ अर्धच्छेद होते हैं, अतः इतनीवार उक्त भज्यमान राशि के अर्धच्छेद करने पर ३२७६८ प्रमाण अवहारकालराशि आती है । यहां पर जितने स्थान ऊपर गये हों उतनी शलाकाओं का विरलन करके और उस राशिके प्रत्येक एकको दो रूप करके परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उसमेंसे एक कम करके शेष राशिसे जगश्रेणी के अर्धच्छेदोंको गुणित करके जो लब्ध आवे उसमें घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलके अर्धच्छेदों को मिला देने पर विवक्षित भागद्दारके अर्धच्छेदों का प्रमाण होता है । इसीप्रकार संख्यात, असंख्यात और अनन्त वर्गस्थानोंमें ले जाना चाहिये । इसप्रकार अनुरूप प्ररूपणा समाप्त हुई । अब घनाघनमें गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं - घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलसे जगप्रतरको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे घनलोकके भाजित करने पर अवहारकालका प्रमाण आता है, क्योंकि, जगप्रतरसे घनलोकके भाजित करने पर जगश्रेणीका प्रमाण आता है, पुनः घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलसे जगश्रेणी के भाजित करने पर अवहारकालका प्रमाण आता है । इसप्रकार अवहारकाल आता है ऐसा समझकर पहले गुणा करके अनन्तर भागका ग्रहण किया । ६५५३६३ ÷ ८५८९९३४५४२ = उदाहरण -- ६५५३६' x २ = ८५८९९३४५९२१ ३२७६८ अच. अथवा, घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलसे जगप्रतरको गुणित करके जो लब्ध आवे उससे घनलोकको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका घनलोकके उपरिम वर्गमें भाग देने पर अव द्वारकालका प्रमाण आता है, क्योंकि, घनलोकका उसके उपरिम वर्गमें भाग देने पर घनलोक आता है, पुनः जगप्रतरका घनलोक में भाग देने पर जगश्रेणी आती है, पुनः धनगुलके द्वितीय वर्गमूलका जगश्रेणीमें भाग देने पर अवहारकालका प्रमाण आता है। इसप्रकार र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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