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________________ १९८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, २, १७. उवरि सव्वत्थ चडिदद्घाणवग्गसलागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोण्णभत्थरासिणा तिरूवूणेण सेढिसमाणवेरूववग्गस्स अद्धच्छेदणए गुणिय घणंगुलविदियवग्गमूलस्स अद्धच्छेदणयपक्खित्तमेत्ता भवंति । एवं संखेज्जासंखेज्जाणतेसु वग्गट्ठाणेसु णेयव्यं । वेरुवपरूवणा गदा । अट्ठरूवे वत्तइस्सामो । घणंगुलविदियवग्गमूलेण सेढिम्हि भागे हिदे अवहारकालो आगच्छदि । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छे दणए कदे वि अवहारकालो आगच्छदि । अहवा घणंगुलविदियवग्गमूलेण सेढिं गुणेऊण जगपदरे भागे हिदे अवहारकालो आगच्छदि । केण कारणेण ? जगसेढीए जगपदरे भागे हिदे सेढी आगच्छदि । पुणो वि घणंगुलविदियवग्गमूलेण सेढिम्हि भागे हिदे अवहारकालो आगच्छदि । एवमागच्छदि त्ति कट्ट गुणेऊण भागग्गहणं कदं । अहवा अवहारकालो विउणादिकरणेण वड्ढावेयव्यो । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स ऊपर सर्वत्र जितने वर्गस्थान ऊपर जावें उनकी वर्गशलाकाओंका विरलन करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकको दोरूप करके परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उसमेंसे तीन कम करके शेष रही हुई राशिसे जगश्रेणीके समान द्विरूप वर्गकी अर्धच्छेद शलाकाओंको गुणित करके जो लब्ध आवे उसमें घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलके अर्धच्छेद मिला देने पर जो जोड़ हो उतने विवक्षित भागहारके अर्धच्छेद होते हैं। इसीप्रकार संख्यात, असं. ख्यात और अनन्त वर्गस्थानोंमें ले जाना चाहिये । इसप्रकार द्विरूप प्ररूपणा समाप्त हुई। - अब अष्टरूपमें बतलाते है-घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलसे जगश्रेणीके भाजित करने पर अवहारकालका प्रमाण आता है। उदाहरण-६५५३६२% ३२७६८ अव. उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हो उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी अवहारकालका प्रमाण आता है। उदाहरण-उक्त भागहारका १ अर्धच्छेद है, अतः इतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी ३२७६८ प्रमाण अवहारकाल आता है। अथवा, घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलसे जगश्रेणीको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका जगप्रतरमें भाग देने पर अवहारकालका प्रमाण आता है, क्योंकि, जगश्रेणीसे जगप्रतरके भाजित करने पर जगश्रेणीका प्रमाण आता है, पुनः घनांगुलके द्वितीय वर्गमूलसे जगश्रेणीके भाजित करने पर अवहारकालका प्रमाण आता है । इसप्रकार अवहारकालका प्रमाण आता है, ऐसा समझकर पहले गुणा करके अनन्तर भागका ग्रहण किया। अथवा द्विगुणादिकरण विधिसे अघहारकाल बढ़ा लेना चाहिये। उदाहरण-६५५३६ ४२ = १३१०७२, ४२९४९६७२९६ : १३१०७२% ३२७६८ अव. उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी अवहारकालका प्रमाण आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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