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________________ षट्खंडागमकी प्रस्तावना लगभग १७० अक्षर हैं । इस प्रकार प्रत्येक ताड़पत्रपर श्लोक संख्या १३८ आती है, जिससे कुलप्रथका प्रमाण २७६०० श्लोकोंके लगभग आता है। किन्तु बड़े बड़े पारिभाषिक शब्दोंके सूक्ष्मरूप बनाकर लिखे गये हैं, इससे श्लोक प्रमाण अधिक भी हो सकता है । तीसरा ग्रंथ श्रीजयधवल सिद्धान्त है । इसके ताड़पत्रोंकी लम्बाई २ । फुट, चौड़ाई २॥ इंच, तथा पत्रसंख्या ५१८ है । प्रत्येक पृष्ठपर प्रायः १३ पंक्तियां, और प्रत्येक पंक्ति में लगभग १३८ अक्षर हैं। इस प्रकार प्रत्येक ताड़पत्रपर श्लोक संख्या लगभग १२० आती है, जिससे कुल ग्रंथका प्रमाण ६११२४ श्लोकोंके लगभग आता है । ३ यह मूडबिद्रीका वही सुप्रसिद्ध मंदिर है, जहां सिद्धान्त ग्रंथोंकी ताडपत्रीय प्रतियां शताब्दियों से बिराजमान हैं । इन्हीं के कारण यह मन्दिर ' सिद्धान्त मन्दिर' या ' सिद्धान्त बसदि ' -कहलाता है । अनेक रत्नमयी प्रतिमायें भी यहां विराजमान हैं, जिनके दर्शन के लिये प्रतिवर्ष दूर दूरसे यात्री आते हैं । यहां के मूलनायक श्रीपार्श्वनाथ तीर्थंकर हैं । यहीं महारक गद्दी है, जिससे इसे ' गुरु बसदि ' भी कहते हैं । इसका सब कार्यभार एक पंचायत के आधीन है, जिससे यह 'पंचायती मन्दिर' भी कहलाता है । 1 ४ 1 1 यह मूडबिद्रीका 'बडा मन्दिर' है। यहां के मूलनायक श्री चन्द्रप्रभ तीर्थंकर हैं, जिनकी मूर्ति सुवर्ण आदि पंच धातुओंकी बनी मानी जाती है। इसकी इमारत तीन मंजिलकी है । दूसरे मंजिलपर ' सहस्रकूट चैत्यालय ' बहुत ही मनोज्ञ है । तीसरे मंजिलमें छोटी बडी ४० प्रतिमाएं विराजमान हैं जो स्फटिकमयी हैं । इसीलिये इस मंजिलको ' सिद्धकूट ' भी कहते हैं । मन्दिरके सन्मुख एक 'मानस्तंभ' और एक 'ध्वजस्तंभ' खड़ा है । तीनों मंजिलोंमें स्तंभोंकी संख्या कोई एक हजार है, जिससे इस मन्दिरका नाम ' सहस्रस्तंभ ' या हजार स्तंभवाला मन्दिर प्रसिद्ध हुआ है । अपनी अनुपम सुन्दरता के कारण यह मन्दिर 'त्रिभुवन- तिलक- चूडामणि' भी कहलाता है । T ५ 1 ये मूडबिद्री स्वर्गीय भट्टारक श्रीचारुकीर्ति स्वामी हैं । आप संस्कृतके अच्छे विद्वान् थे, तथा अन्य अनेक भाषाओंके भी जानकार थे । आपके समय में मूडी में अच्छी धर्मप्रभावना हुई | आपने कई जगह कितने ही जैनमंदिरोंका जीर्णोद्धार कराया व पंचकल्याणादि कराये । आपकेही सुसमय में श्रीधवल और श्रीजयधवल, इन दोनो सिद्धांत ग्रंथों की प्रतिलिपियां हुईं थीं, और तीसरे सिद्धान्त ग्रंथ महाधवलकी प्रतिलिपिका कार्य भी प्रारम्भ हो गया था । अजैन जनतामें भी आपका अच्छा गौरव और सन्मान रहा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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