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________________ १ चित्र परिचय. ऊपरसे नीचेकी ओर प्रथम सचित्र ताड़पत्र श्रीधवल ग्रंथका है। इसके मध्यमें एक तीर्थकरका चित्र है, जिसके दोनों ओर अनुमानतः यक्ष-यक्षिणी खड़े किये गये हैं। इसके दोनों ओर दो दो तीर्थंकरोंके और चित्र हैं, तथा उनके एक ओर यक्ष और दूसरी ओर यक्षिणी चित्रित हैं । फिर दोनों छोरोंपर प्रवचन करते हुए आचार्य व श्रोता श्रावकोंके चित्र हैं। दूसरा सचित्र ताड़पत्र भी श्रीधवल ग्रंथराजका है। बीचमें तीर्थंकर विराजमान हैं, और आजू बाजू सात सात भक्त वन्दना करते हुए दिखाये गये हैं। तीसरा ताड़पत्र श्रीधवलका कनाड़ी लिपिमें हस्त-लिखित है। चौथा ताड़पत्र कनाड़ी लिपिमें हस्त-लिखित श्रीमहाधवल ग्रंथका है। पांचवां ताड़पत्र श्रीजयधवल ग्रंथका है । बीचमें कनाड़ीका हस्तलेख तथा आजू बाजू चित्र हैं। छठवां ताड़पत्र श्रीमहाधवलका २७ वा पत्र है, जहां ' सत्तकम्मपंचिका' पूरी हुई कही जाती है । इसके भी बीचमें हस्तलेख और आजू बाजू चक्राकार चित्र हैं। सातवा ताड़पत्र त्रिलोकसार ग्रंथके भीतरका है। नीचेसे ऊपरकी ओर प्रथम ग्रंथ श्रीधवल सिद्धान्त (षट्खंडागम) है । इसके ताड़पत्रोंकी - लम्बाई २ फुट, चौडाई २॥ इंच, तथा पत्र संख्या ५९२ है । प्रत्येक पृष्ठ पर प्रायः ११ पंक्तिय हैं, और प्रत्येक पंक्तिमें लगभग १३८ अक्षर हैं । इसप्रकार प्रत्येक ताड़पत्रपर श्लोक-संख्या लगभग १२०॥ आती है, जिससे कुल ग्रंथका प्रमाण ७१९८४ श्लोंकोंके लगभग आता है। अभीतक यही समझा जाता था कि धवलाकी प्राचीन ताडपत्रीय प्रति एकमात्र यही है। किन्तु अब खोजसे ज्ञात हुआ है कि वहां धवलाकी दो और भी ताडपत्रीय प्राचीन प्रतियां हैं, जिनकी ताडपत्रोंकी संख्या क्रमशः ८०० और ६०५ है। इनमें पाठभेदभी कहीं कहीं बहुत कुछ पाया जाता है। किन्तु इन दोनों प्रतियों के बीचबीच के अनेक ताड़पत्र अप्राप्य हैं, और इस प्रकार ये दोनोही प्रतियां बहुत कुछ त्रुटित हैं। इनका प्रशस्तियों आदि सहित विशेष परिचय आगेके भागमें देनेका प्रयत्न किया जायगा । ____ दूसरा ग्रंथ श्रीमहाधवल कहलाता है । इसके ताड़पत्रोंकी लम्बाई २ फुट . इंच, चौड़ाई २॥ इंच तथा पत्रसंख्या २०० है । प्रत्येक पृष्ठपर प्रायः १३ पंक्तिया, और प्रत्येक पंकिमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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