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________________ १२८] छकावंडागमे जीवाणं [ १, २, १५. वग्गट्ठाणाणि उवरि अब्भुस्सरिदूण जहण्णपरित्ताणंतादो असंखेज्जलोगमेत्तवग्गट्ठाणाणि हेहा ओसरिऊण दोण्हमंतरे जिणदिवभावरासी घेत्तव्यो। अधवा तिण्णिवारवग्गिदसंवग्गिदरासीदो असंखेज्जगुणो छदव्यपक्खित्तरासीदो असंखेजगुणहीणो । को तिण्णिवारवग्गिदसंवग्गिदरासी को वा छदव्यपक्खित्तरासि त्ति वुत्ते बुच्चदे- जहण्णमसंखेजासंखेज्जं विरलेऊण एकेकस्स रूवस्स जहण्णमसंखेज्जासंखेजयं दाऊण वग्गिदसंवग्गिदं करिय पुणो उप्पण्णरासिं दुप्पडिरासिं करिय एगरासिं विरलेऊण एक्केक्कस्स रूवस्स उप्पण्णमहारासिं दाऊण अण्णोण्णभत्थं करिय पुणो उप्पण्णरासिं दुप्पडिरासिं करिय एगरासिं विरलेऊण एक्केक्कस्स रुवस्स उप्पण्णमहारासिं दाऊण अण्णोण्णब्भत्थे कदे तिण्णिवारवग्गिदसंबग्गिदरासी हवदि। एसा तिण्णिवारवग्गिदसंवग्गिदरासी पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। कुदो ? जेणेदस्स वग्गसलागाणं वग्गसलागाओ जहण्णपरित्तासंखेज्जस्स उवरिमवग्गमपावेऊणुप्पण्णाओ पलिदोवमवग्गसलागाणं पुण वग्ग मध्यमें जिनेद्रदेवने जो राशि देखी है उसका यहां ग्रहण करना चाहिये। अथवा, तीनवार वर्गितसंवर्गित राशिसे असंख्यातगुणी और छह द्रव्यप्रक्षिप्त राशिसे असंख्यातगुणी हीन राशि प्रकृतमें लेना चाहिये। शंका-तीनवार वर्गितसंवर्गित राशि कौनसी है और छह द्रव्यप्रक्षिप्त राशि कौनसी है ? इसप्रकार पूछने पर आचार्य उत्तर देते हैं समाधान - जघन्य असंख्यातासंख्यातका विरलन करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके ऊपर जघन्य असंख्यातासंख्यातको देयरूपसे दे कर उनका परस्पर गणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उसकी फिरसे दो पंक्तियां करनी चाहिये। उनमेंसे एक राशिका विरलन करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके ऊपर दूसरी पंक्तिमें स्थित महाराशिको देयरूपसे देकर परस्पर गुणा करनेसे जो महाराशि उत्पन्न हो, उसकी फिरसे दो पंक्तिया करनी चाहिये। उनमें से एकका विरलन करके और उस विरलित राशिके ऊपर दूसरी पंक्तिमें स्थित उत्पन्न हुई महाराशिको देयरूपसे देकर परस्पर गुणा करने पर तीनवार वर्गितसंवर्गित राशि उत्पन्न होती है । (पृष्ठ २३ पर तीनवार वर्गितसंवर्गितराशिका बीजगणितसे उदाहरण दिया है उसीप्रकार यहां समझना चाहिये।) यह तीनवार वार्गितसंवर्गित राशि पल्योपमके असंख्यातवें भाग है, क्योंकि, इसकी वर्गशलाकाओंकी वर्गशलाकाएं जघन्य परीतासंख्यातंके उपरिम वर्गको नहीं प्राप्त होकर, १ ति. प. पत ५२. त्रि. सा. ३८.४१. बितिच उपंचमगुणणे कमा सगासंख पढमच उसत्ता । णता ते रूवजुआ मज्झा रूवूण गुरु पच्छा ॥ इअ सुत्तत्तं अन्ने वग्गिअमिकसि च उत्थयमसंख । होइ असंखासंखं लहु रूवजुअं तु तं ममं ॥ रूवणमाइमं गुरु तिवम्गि तस्थिमे दसक्खवे ॥ क.ग्र. ४, ७९.८१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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