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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, २, १२. उत्तरदलहयगच्छे पचयदलणे सगादिवेत्त पुणो ।
पक्खिविय गच्छगुणिदे उवसम-खवगाण परिमाणं ॥ १४ ॥ एसा उत्तरपडिवत्ती । एत्थ दस अवणिदे दक्षिणपडिवत्ती हवदि । एसा उवसम-खवगपरूवणगाहा
तिसदिं वदंति केई चउरुत्तरमस्थपंचयं केई उवसामगेसु एदं खवगाणं जाण तदुगुणं ॥ ४५ ॥ चउरुत्तरतिष्णिसयं पमाणमुवसामगाण केई तु ।।
तं चेव य पंचूर्ण भणंति केई तु परिमाणं ॥ १६ ॥ एगेगगुणट्ठाणम्हि उवसामग-खवगाणं पमाणपरूवणगाहा
उत्तर अर्थात् प्रचयको आधा करके और उसे गच्छसे गुणित करने पर जो लब्ध आवे उसमेंसे प्रचयका आधा घटा देने पर और फिर स्वकीय आदि प्रमाणको जोड़ देने पर उत्पन्न राशिके पुनः गच्छले गुणित करने पर उपशमक और क्षपकोंका प्रमाण आता है ॥४४॥
उदाहरण-क्षपकोंकी अपेक्षा आदि ३४, प्रचय १२, गच्छ ८, उपशमकोंकी अपेक्षा मादि १७, प्रचय ६, गच्छ ,
१२:२% ६, ६४८ = ४८, ४८ - ६= ४२, ४२+३४ = ७६, ७६४८ = ६०८ एक गुणस्थानमें क्षपकोंका प्रमाण ।
६.२ = ३, ३४८ = २४, २४ - ३ = २१, २१ + १७ = ३८, ३८४८= ३०४ एक गुणस्थानमें उपशमकोका प्रमाण ।
विशेषार्थ-यद्यपि यह करणगाथा यहां पर उपशमकों और क्षपकोंका प्रमाण लानेके लिये उद्धत की गई है और उसमें उपशमकों और क्षपकोंके प्रमाण लानेकी प्रतिक्षा भी की गई है, परंतु जहां समान हानि या समान वृद्धि पाई जाती है ऐसी अनेक संख्याओंका जोड़ भी इसी नियमसे आ जाता है।
__ यह उत्तरमान्यता है । ६०८ मेंसे १० निकाल देने पर दक्षिणमान्यता होती है । अब आगे उपशमक और क्षपक जीवोंके प्रमाणकी प्ररूपणा करनेवाली गाथा देते हैं
कितने ही आचार्य उपशमक जीवोंका प्रमाण तीनसौ कहते है। कितने ही आचार्य तीनसौ चार कहते हैं और कितने ही आचार्य तीनसौ चारमेंसे पांच कम अर्थात् दोसो निन्यानवे कहते हैं । इसप्रकार यह उपशमक जीवोंका प्रमाण है । क्षपकोंका इससे दुना जानो॥४५॥
कितने ही आचार्य उपशमक जीवोंका प्रमाण तीनसौ चार कहते है और कितने ही आचार्य पांच कम तीनसौ चार अर्थात् दोसौ निन्यानवे कहते हैं॥४६॥
आगे एक एक गुणस्थानमें उपशमक और क्षपक जीवोंके प्रमाणकी प्ररूपणा करनेवाली गाथा देते हैं
१ गो. नी. ६२६. सं. पं. ६९.
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