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________________ १, २, ६.] दव्वपमाणाणुगमे सासणसम्माइडिआदिपमाणपरूवणं [८७ विदियवग्गमूलस्स असंखेज्जदिभागेण सासणसम्माइट्ठिरासिणा उवरि इच्छिदवग्गे भागे हिदे जं भागलद्धं तेण तमेव वग्गं गुणेऊण तस्सुवरिमवग्गे भागे हिदे सासणसम्माइद्विरासी आगच्छदि । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि सासणसम्माइद्विरासी अवचिट्ठदे । एवं सव्वत्थ घणाघणधाराए वत्तव्यं । गहिदगुणगारो गदो। एवं सासणसम्माइटिपरूवणा समत्ता। एवं सम्मामिच्छाइट्ठिअसंजदसम्माइट्ठि-संजदासंजदाणं च वत्तव्यं । णवरि विसेसो अप्पप्पणो अवहारकालेहि खंडिदादो वत्तव्वा । एत्थ एदेसि संदिह्रि वत्तइस्सामो वत्तीस सोलस चत्तारि जाण सदसहिदमट्ठवीसं च । एदे अवहारत्था हवंति संदिट्टिणा दिहा ॥ ३७॥ घनाघनधारामें गृहीतगुणकार उपरिम विकल्पको बतलाते हैं घनाघनके द्वितीय वर्गमूलके असंख्यातवें भागरूप सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका घनाघनपल्यके ऊपर इच्छित वर्गमें भाग देने पर जो भाग लब्ध आवे उससे उसी इच्छित घर्गको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका उसी इच्छित वर्गके उपरिम वर्गमें भाग देने पर सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है।। उदाहरण- १६... हरण- = २०४८. ६५५३६४ ६५५३६. २०४८ -=६५५३६°४३२, ६५५३६८४ ६५५३६१ ४ ३२ = ६५५३६३५ x ३२; ६५५६६५-३२- २०४८ सा. उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवराशि आती है। उदाहरण-उक्त भागहारके ५६५ अर्धच्छेद होते हैं, इसलिये इतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी २०४८ प्रमाण सासादनसम्यग्दृष्टि राशि आती है। सर्वत्र घनाघनधारामें आगे भी इसीप्रकार कहना चाहिये । इसप्रकार गृहीतगुणकार उपरिम विकल्प समाप्त हुआ। इसप्रकार सासादनसम्यग्दृष्टि प्ररूपणा समाप्त हुई । इसीप्रकार सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत जीवराशिके प्रमाणका खण्डित, भाजित आदिके द्वारा कथन करना चाहिये। इतनी विशेषता है कि अपने अपने अवहारकालके द्वारा ही खण्डित, भाजित आदिका कथन करना चाहिये। आगे इन सबकी अंकसंदृष्टि बतलाते हैं सासादनसम्यग्दृष्टिसंबन्धी अवहारकालका प्रमाण ३२, सम्यग्मिथ्यादृष्टिसंबन्धी अषहारकालका प्रमाण १६, असंयतसम्यग्दृष्टिसंबन्धी अवहारकालका प्रमाण ४, भौर संयता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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