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१, २, ५.] दवपमाणाणुगमे मिच्छाइडिपमाणपरूवणं
[४३ काऊण दिण्णे रूवं पडि सव्वजीवरासिपढमवग्गमूलपमाणं पावदि । पुणो सिद्धतेरसगुणठाणेहि भजिदसव्धजीवरासिपढमवग्गमूलं पुयविरलणाए हेट्ठा विरलिय उवरिमविरलणाए एगपढमवगमूलं घेत्तूण समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि सिद्धतेरसगुणहाणपमाणं पावेदि । तत्थुवरिमविरलणयरूवूणमेत्तसव्यजीवरासिपढमवग्गमूलाणि रूवृणहेद्विमविरलणमैत्तसिद्धतेरसगुणहाणपमाणाणि च घेतूण मिच्छाइट्ठिरासी होदि । पमाणं गदं । केण कारणेण ? सव्वजीवरासिणा सव्वजीवरासिउवरिमनग्गे भागे हिदे किमागच्छदि ? सव्व
एकके ऊपर जीवराशिको समान खण्ड करके देवरूपसे दे दने पर विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति संपूर्ण जीवराशिका प्रथम वर्गमूल प्राप्त होता है। अनन्तर सिद्धराशि और सासादन आदि तेरह गुणस्थानवी जीवराशिका संपूर्ण जीवराशिके प्रथम वर्गमूल में भाग देने पर जो लब्ध आवे उसे पहले विरलनके नीचे विरलित करके उपरिम विरलनके एकके प्रति प्राप्त संपूर्ण जीवराशिके प्रथम वर्गमूलको ग्रहण करके और उसके समान खण्ड करके अधस्तन विरलनके प्रत्येक एकके ऊपर देयरूपसे स्थापित करने पर प्रत्येक एकके प्रति सिद्धराशि और सासादन आदि तेरह गुणस्थानवी जीवराशि का प्रमाण प्राप्त होता है। यहां पर उपरिम विरलनमें प्ररूपण किये गये संपूर्ण जीवराशिके एक कम प्रथम वर्गमूलोंको और एक कम अधस्तन विरलनमात्र सिद्ध और सापादन आदि तेरह गुणस्थानवी जीवोंके प्रमाणको मिला देने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण होता है । इसप्रकार प्रमाणका वर्णन समाप्त हुआ।
उदाहरण ( प्रमाण )- जीवराशि = १६; प्रथम वर्गसूल=४, सिद्धतेरस-३ (१ विरलन वर्गमूल ) ४ ४ ४ ४
- , १ सिद्धतेरसका प्रथम वर्गमूलमें
३ भाग देने पर लब्ध (२ विरलन) ३ १
(अतः मिथ्यादृष्टि राशिका प्रमाण प्रथम विरलनकी शेष तीन राशियां ४+४+४=१२ और दूसरे चिरलनमें प्रथम राशि (सिद्धतेरस) को छोड़कर दूसरी राशि १ मिला देने पर मिथ्यादृष्टि राशिका प्रमाण १२+१=१३ आ जाता है।)
किस कारणसे?
शंका-संपूर्ण जीवराशिका संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गमें भाग देने पर कौनसी राशि आती है ?
समाधान-संपूर्ण जीवराशिका संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गमें भाग देने पर संपूर्ण जीवराशि ही आती है।
उदाहरण ( बीजगणितसे)-जीवराशि क; = = क
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