________________
४२ ]
छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, २, ५
होदि । विरलिदं गदं । तं चैव ध्रुवरासिं सलागभूदं ठवेऊण मिच्छाइद्विरासिपमाणं सब्वजीवरासिउवरिमवग्गम्हि अवणीय धुवरासीदो एगरूवमवणिज्जदि । पुणो विमिच्छाइडि सिपमाणं सव्जीवरासिस्सुवरिमवग्गम्हि अवणीय ध्रुवरासीदो एगं रूवमवणिज्जदि । एवं पुणो पुणो कीरमाणे सव्वाजीवरासिउवरिमवग्गो च ध्रुवरासी च जुगवं गिट्टिदा । तत्थ एगवारमवणिदपमाणं मिच्छाइडिरासी होदि । अवहिदं गदं । तस्स पमाणं केत्तियं ? सव्वजीवरासिस्स अनंता भागा अनंताणि सव्वजीवरासिपढमवग्गमूलाणिति । तं जहा
-
सव्व जीवरासि पढमवग्गमूलं विरलेऊण एकेकस्स रूवस्स सव्वजीवरासिं समखंड
अतः एक खंड १३ प्रमाण मिथ्यादृष्टि जीवराशि हुई।
पूर्वोक्त ध्रुवराशिको शलाकारूपसे स्थापित करके और मिथ्यादृष्टि जीवराशिके प्रमाणको संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गके प्रमाणमेंसे निकालकर शलाकाभूत ध्रुवराशिमें से एक कम कर देना चाहिये । फिर भी मिथ्यादृष्टि राशिके प्रमाणको शेष संपूर्ण जीवराशिके उपरि वर्ग के प्रमाण में से न्यून करके ध्रुवराशिमें एक और कम कर देना चाहिये । इसप्रकार पुनः पुनः करने पर संपूर्ण जीवराशिका उपरिम वर्ग और ध्रुवराशि युगपत् समाप्त हो जाती है । इसमें एकवार निकाली हुई राशिका जितना प्रमाण हो उतनी मिथ्यादृष्टि जीवराशि है । इसप्रकार अपहृतका वर्णन समाप्त हुआ ।
उदहारण
अपहृत ) -
शलाकारूप ध्रुवराशि १९ १३ जीवराशिका उपरिम वर्ग २५६
-१
-१३
२४३
-१३
२३०
१८१३
- १
१७१३
इस क्रमसे उपरिम वर्गमैसे मिध्यादृष्टि राशिका प्रमाण और ध्रुवराशिमेंसे एक एक घटाते जाने पर शलाकाराशि और उपरिम वर्गराशि एक साथ समाप्त होंगे। इनमें एकवार घटाई जानेवाली संख्या १३ प्रमाण मिथ्यादृष्टि हैं ।
शंका
Jain Education International
- उस मिध्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण कितना है ?
समाधान - संपूर्ण जीवराशिके अनन्त बहुभागप्रमाण मिध्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण है, जो प्रमाण संपूर्ण जीवराशिके अनन्त प्रथम वर्गमूलों के बराबर होता है । उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है
संपूर्ण जीवराशि के प्रथम वर्गमूलको विरलित करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org