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१,२, ४. ]
दवमाणागमे मिच्छाइट्ठिपमाणपरूवणं
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पत्थेण ताव पत्थवाहिरत्थो पुरिसो पत्थबाहिरत्थाणि बीयाणि मिणेदि । कथं लोएण लोयस्थो पुरसो लोयत्थं मिच्छाइहिरासिं मिणेदि ति ? जदो लोगेण पण्णाए मिणिज्जं मिच्छा डिजीवा तदो ण एस दोसो । कथं पण्णाए मिणिज्जंते मिच्छाइट्ठिजीवा ? बुम्बदेएक्वेक्कम्मि लोगागासपदेसे एक्केकं मिच्छाइट्टिजीवं णिक्खेविऊग एक्को लोगो इदि मणेण संकपेयत्र । एवं पुणो पुणो मिणिश्रमाणे मिच्छाइद्विरासी अनंतलोगमेत्तो होदि । एत्थुवसंहारगाहा—
लोगागासपदे से एक णिक्खिवेवि तह दिट्ठ |
एवं गणिमाणे हवंति लोगा अणंता दु ॥ २३ ॥
को लोगो' णाम ? सेढिघणो । का सेठी १ सत्तरज्जुमेत्तायामो । का रज्जू
राशिका प्रमाण लाने के लिये अनन्त लोक होते हैं, अर्थात् अनन्तलोकप्रमाण मिथ्यादृष्टि जीवराशि है ॥ २२ ॥
शंका - प्रस्थसे बहिर्भूत पुरुष प्रस्थसे बहिर्भूत बीजोंको प्रस्थके द्वारा मापता है, यह तो युक्त है, परंतु लोकके भीतर रहनेवाला पुरुष लोकके भीतर रहनेवाली मिथ्यादृष्टि जीवराशिको लोकके द्वारा कैसे माप सकता है ?
समाधान - जिसलिये बुद्धिसे संपूर्ण मिथ्यादृष्टि जीव लोकके द्वारा मापे जाते हैं, इसलिये उपर्युक्त दोष नहीं आता है ।
शंका - बुद्धिसे मिथ्यादृष्टि जीव कैसे मापे जाते हैं ?
समाधान - लोकाकाशके एक एक प्रदेश पर एक एक मिथ्यादृष्टि जीवको निक्षिप्त करके एक लोक हो गया इसप्रकार मनसे संकल्प करना चाहिये । इसप्रकार पुनः पुनः माप करने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशि अनन्तलोकप्रमाण होती है । इसप्रकार बुद्धिसे मिथ्यादृष्टि जीवराशि मापी जाती है । इस विषयकी यहां पर उपसंहाररूप गाथा कहते हैं
लोकाकाशके एक एक प्रदेश पर एक एक मिध्यादृष्टि जीवको निक्षिप्त करने पर जैसा जिनेन्द्रदेवने देखा है उसीप्रकार पूर्वोक्त लोकप्रमाणके क्रमसे गणना करते जाने पर अनन्त लोक हो जाते हैं ॥ २३ ॥
शंका - लोक किसे कहते हैं ?
-
समाधान - जगछेगी घनको लोक कहते हैं ।
शंका - जगछ्रेणी किसे कहते हैं ?
समाधान-- - सात रज्जुप्रमाण आकाश प्रदेशों की लंबाईको जगछेणी कहते हैं ।
१ जगसेदिवणयमाणो लोयायासो । ति प पत्र ४. पयरं सेटीए गुणियं लोगो । अनु. सू. पृ. १५९. २ सेठी विपदा । होदि असंखेज्जदिमप्पमाणविंदंगुलाण हदी ॥ त्रि. सा. ७. असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ सेदी । अनु. पृ. १५९.
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